रोगों की नई चिकित्सा | Rogo Ki Nai Chikitsa

Rogo Ki Nai Chikitsa by लुई कूनेको - Lui Kooneko

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रोग केसे उत्पन्न होता है ? ज्वर क्या हे ? रोग क्या है कैसे उत्पन्न श्और प्रत्यक्ष होता है बुखार क्या है-- श्रादि बातोके संबधमसे लोगोमें बडा श्रम फैला हुआ है । यदि रोगके स्वरूप- का पुरा-पूरा ज्ञान हो जाय तो उसे दूर करनेका उपाय भी आसानीसे मालूम किया जा सकता है और तब अ्ेरेमे टटोलनेका कोई कारण ही नहीं रह जायगा । कुछ रोगोमें झरीरमें कुछ-न-कुछ परिवर्तन अवश्य देख पडता है-- भक्ते ही सबमें एक-जैसा न हो पर होता है अवश्य । इसका अर्थ यह हुभ्रा कि स्वस्थ दरीरका एक साधारण रूप होता है भ्रौर उस रूपमें परिवर्तन रोगका ही परिणाम हुमा करता हैं । गदंन श्रौर शक्‍्लमे जो परिवर्तन देख पडता है वह उदरसे आरभ होनेके कारण उदरमसे भर कमरके नीचे और अधिक होता है । विजातीय द्रव्य मरमार्गोसि बाहर न निकल सकनेपर मास- पेशियोमे पहुच जाता है जिससे शरीर कुछ फैल जाता है । जब पेशियोका तनाव इतना बढ जाता है कि वे और स्थान नहीं दे सकती तब यह द्रव्य पेशियोकी बगलमे त्वचाके नीचे एकत्र होने लगता है । गदन और झवलका परिवर्तन इसी झवस्थामे प्रत्यक्ष होता है । गर्दन भ्रौर दाक्लका यह परिवर्तन उनमे विजातीय द्रव्यका एकत्र होना इस बातका प्रमाण है कि वह दारीरके अझधोभागमे अधिक मात्रासे एकत्र हुभ्रा होगा क्योकि नीचे उदरमें एकत्र होनेके बाद ही वह ऊपरकी आर वढता है । लोगोको इस वातका ज्ञान नहीं होता कि शरीर गछत जगह में एकत्र इस द्रव्यका कोई उपयोग नहीं कर सकता आर यह उसका अश नहीं है । वे यह भी नहीं जानते कि झाया यह द्रव्य ही रोगका कारण है या रोगके ही कारण यह द्रव्य एकत्र हुआ है। गुरुत्वाकबंणके सिद्धान्तके झनुसार यह द्रव्य पहले शरीरके एक ही पाइवंमे--विद्षेषकर जिस करवट




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