मानवता के चरने | Manvta Ke Charne

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Manvta Ke Charne by काका कालेलकर - Kaka Kalelkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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& ५. ~ सम्पूर्ण और गहरा विचार किया जाना चाहिये । गुनाह और युनहगारों और युनाहोकी रोकथामके भुपायोंकि वारेमें मुझे लगता हैं कि अब विचार करनेका समय था गया है। में यह भी कह सकता हूँ कि यह सवाल मेक प्रकारसे समाज-शिक्षणसे सम्बय रखता है । जिन कथाओमेसे अनेक कथाये सत्यके साहात्म्यका रहस्य समझाने वाटी हं । सव्यसे हानि तौ गायद दही होती है, किन्तु अगर हानि-लाभका हिसाव लगावें तो हानिकी अपेक्षा लाभ ही अधिक होता है। सत्यका यह व्यावहारिक पहलू लोगो, विज्षेषकर वकीलों और राजनीतिक पुरुपो के लिये समझ लेना कितना आवष्यक है, यहु जिन कयासि ज्ञात हो जाता ई । सत्यसे पारस्परिक विदवास वढता ह, सहयोग सभव होता ह मौर समाजं अचा जुठता ह । मेरा वकारुतका ओर जेलका यह्‌ अनुमव हँ कि रोगोमें यह जो गलत धारणा फँली हुआ है कि अदालतोमें तो झूठ चोलना ही चाहिये, वह्‌ समाजके विकास जौर प्रगतिको रोकती है, समाजके सुखी जीवनको धृलमे मिला देती ह । महम्मद मसाने सत्यका माय लिया होता तो फसीसे वच जाता; किन्तु कानूनके सलाहकारोकी सखाहकौ खातिर वहं मर-मिटा । कितना करुण 1 अदालतने क्या किया होता, जिस वारेमे सन्देह किया जा सकता ह, किन्तु कानजीका वचाव सत्यके विना नही होता, सत्यत्ते ही जुसका वचाव हमा । मानसश्ास्त्रकी दृष्टिसे कितनी ही कयागोपर विचार किया जाय तो जात होगा किं अनेक मर्तवा मनुष्यके जिरादो ओौर विचारकी दिवामे लगभग अतक्य होती हूं। भूपर-अपरसे घटनाओंकि कारणोकी वास्तविक कल्पना नहीं हो सकती । माघो अपना ओज्ञाका घन्घा चलानेके लिये चाल्कोका खून करनेको तैयार होता है, यह प्रथम विचारमे माना नहीं जा सकता, किन्तु है यह निरा सत्य ही । वेमेल विवाहका कंसा नतीजा निकल सकता है, यह शाहजादेके मामले से प्रकट है। ववलीको अगर योग्य वर मिला होता तो अुसकी दुनिया दूसरी ही तरहकी होती। सामाजिक प्रतिष्ठा और पैसेके लोभसे जो वेमेल विवाह्‌ होते है, जुकके परिणाम सोमाके मासलेमे देखनेको मिलते है।




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