तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा | Tirthkar Mahaveer Aur Unki Acharya Parampara

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Tirthkar Mahaveer Aur Unki Acharya Parampara  by डॉ नेमिचंद्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२५०० वर्षों मे छाखो श्रमणो तथा उपासकोका योगदान रहा है । उन्हीके त्याग और साधनाके फलस्वरूप भगवान्‌ महावीरके सिद्धान्त और वाइमय न्यूनाधिक रूपमे हमे प्राप्त है। तीर्थक्षेत्र, मन्दिर, मूर्तियाँ, ग्रन्थागार, स्मारक आदि सास्कृत्तिक विभव उन्हीके अटूट प्रयत्तोसे आज सरक्षित है । इन सबका उल्लेख करनेके लिए विपुल सामग्रीकी आवश्यकता है, जो या तो विलुस हो गयी या नष्ट हौ मयी या विस्मृत्िके गतंमे चली गयी है । जो अवरिष्ट वाङ्मय, शिलालेख भौर इतिहास हमे सोभाग्यसे उपलब्ध है उन्हीपरसे तीर्थकर महावीरकी उत्तराधिकारिणी परम्पराकी अवगति सम्भव है । डॉक्टर शास्त्रीने इस उपलब्ध सामग्रीका आलोडन-विलोडन-दकरके जिन आचार्यों और उनके वाद्मयका परिचय प्राप्त किया है उन्हें तीन खण्डोमे विभक्त किया है । इन्हीं खण्डोका यहाँ परिचय प्रस्तुत है । दूसरा खण्ड 'धरुतघराचायं और सारस्वताचाये' है । इस खण्डमे दो परि- च्छेद हैं--१ श्रुतघराचायं और २ सारस्वत्ताचायं । प्रथम परिच्छेद : श्रुतघराचायं दरस परिच्छेदमे भरुतधराचार्यो का परिचय निबद्ध है। श्रुत्तराचायंसे लेखकका अभिप्राय उन माचार्यो से है, जिन्दोने सिद्धान्त-साहित्य, कर्म-सादहित्य, अध्यात्म-साहित्यका ग्रथन किया है मौर जो युग-सस्थापक एव युगान्तरकारी हैं इन आचार्यो मे गणधर, वरसेन, पुष्पदन्त, -मूतवलि, यतिवृषम्‌, उच्वारणा- चायं, आर्यमक्ष, नागहस्ति,. कुन्दकुन्द, वप्पदेव आर गृद्धपिच्छाचायं अभिप्रेत हैं। भारम्भमे भाचायंका स्वरूप, आचार्यका महावीर वाइमयके साथ सम्बन्ध, श्रुतका वण्यं विषय, उसके भेद-प्रमेद एव उनका सामान्य परिचय अदधत है । शरुतकै धारक आचार्यो को प्रस्परामे.ञाद्य आचायं गृणधर ओर घरसेनके व्यक्तित्व, समय-निर्धारण एव वैदुष्यपर प्रकाश डालते हुए गुणघरा- चाये द्वारा रचित कृसायपाहुड' का तथा_धरसेनाचायके साक्षाच्छिष्य पष्पदन्त. एवं भूत्तबलि भौर उनके षट्‌ खण्डागम'का.विस्तृत परिचय दिया गया है । आयं मक्षु, नागहस्ति, वख, वखय॒श, चिरन्तनाचायं, यतितृषभ्‌, उच्चारणाचायं और कुन्दकुन्दाचायंके व्यक्तित्व, कृतित्व ओर समय्‌-निर्णय्‌ आदि प्र.वि्ेष विचार करते हुए अ (विश. परिचय दिया गया है | प र और आनाय गुढपिन्छ तथा इनकी शीख है। ही द्वितीय परिच्छेद सारस्वताचायं इसमे श्रतधराजायं गौर सारस्वतावचार्यकी मेदक रेखाओोका.जड्धन्‌ करते हए स्वामी समन्त, सिद्धसेन, देव॒नन्दि-प्यपाद, पानुकेसरी (पावरस्वासी), जोइदु, सा आमुख १५




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