श्री भाष्य | Shree Bhashya
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
59 MB
कुल पष्ठ :
574
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६४७ )
लेना आवश्यक हो जाता है । क्यो कि-सभी प्रमाण, किसी न किसी विषय
में तक का सहारा लेकर ही, वास्ताविक अर्थ का निणंय कर पाते हैं ।
वस्तु विशेष के स्वाभावविशेष के निरूपण सेहो अथवा सामग्री (कारण)
विशेष के निरूपण से हो, ऐसे विषय विशेषके प्रामाण्य व्यवस्थापक,
इत्तिकत्तव्यता रूपी ज्ञान का नाम ही तक है, इसी का दूसरा प्रयायवाची
नाम “ऊह' है |अर्थात्ू- किसी एक विषय में, दो या उससे अधिक
प्रमाणों के परस्पर विरोधी होने पर, जिसके द्वारा उक्त विरोध का परि-
हार करके सामंजस्य स्थापना की जाय उसेहीतकं या ऊह कहते हैं-
विरोध परिहार के दो उपाय हैं-(१) विवादास्पद विषय के स्वाभाविक,
विषय का निर्धारण (२) विवाद के कारण की पर्यालोचना | विषय के
समाधान में, सभी प्रमाणों को तरह तकं भी अपेक्षा होती. है. ऐसा
मनु ने भी कहा है “जो तक को द्वारा अचुसंघान करता है, वही धर्म तत्त्व
को जान पाता है; दूसरा नहीं “ऐसे तके की सहायता से, शास्त्राथे निरू-
पण को ही श्रुति में “मंतव्य” कहा गया है ।
श्रथोच्येत्-श्रुट्या जगतो ब्रह्मेकका रणत्वे निश्चिते सति ,तत्कार्यस्यापि
जगतश्चेतन्यानुवृत्तिरभ्युपगभ्यते । यथा चेतनस्य सुषुसिमूर्च्छादिषु
चैतन्थानुपलम्भः .तथा घटादिष्वपि सदेव चैतन्यमनुद् भूतं श्रतएव
चेतनाचेतन विभाग इति । नैतदुपपद्यते यतो नित्यानुपलन्धिरसद्
भावमेव साधयति । श्रतएव चेतन्यशक्तियोगोऽपि तेषु निरस्तः।
यस्यहि क्वचित्कदाचिदपि यत् कार्यानुपलन्धिः .तस्य तत्कायंशक्ति
ब्रुवाणो, ब॑न्ध्योसुतसमितिषु तज्जनननीनां प्रजननशक्ति ब्रूताम् ।
यदि कहो कि-श्रुति से जगत के एकमात्र कारण ब्रह्म को निश्चि
कर देने से, तदनुसारं उसके कायं रूप जगत को भी चैतन्य वृत्ति वाला
मानलेंगे, जसे कि-चेतन्य की सुषप्ति मूर्च्छां इत्यादि अवस्थाओं में,
चैन्योचित चेष्टायें नहीं पाई जातीं, उसी प्रकार घट आदि जागतिक
पदार्थों में भी, जो कि चंतस्य ही हैं, चेतन्यता अव्यक्त रहती है, ऐसा
मानने से, चेतनाचेतनं का भेद भी संगत हो जाता है इत्यादि, तुम्हारा
यह कथन सवंधा हास्थास्पंद है, जागतिकं घट आदि पदार्थ सदा ही
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