नारी | Nari

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Nari by अतुल कृष्ण गोस्वामी - Atul Krishn Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र ज़ीवन नभ में सुधा वारिधर युग प्रभात में उदित रूप रवि । है ग्रनस्त रमणीय रुचिर रस भ्रमृत झूति करता प्रग्ताम कवि ॥। श् निखिल लोक गुरु प्रति जन श्रात्मा चिर भरत जन स्वप्न सान्ध्यघन । तुमसे मधघुमयि सबकी रजनी-- मज्जल मय सुख मय सबके दिन ॥ है. मूदुता मोह मधुरता में ऋणजु सकल दाक्तियों को भ्राश्रित कर। क्ररुण पयस्वुत निज स्नेह से ब्रिभ्नुवन में पुरुपार्थ रहीं भर ॥। प्र हो सजीव - संहत - मानवता पूर्ण पुरुष की पुण्य प्रकृति जय । मर््य॑ लोक स्वर्लॉक बना है स्वर्ग बना तुमसे महिमा मय ॥। द्‌ वसुन्धरा के रू अ्रड्ध में तुम मयड्ु श्रकलबु पड़ हर 1 प्रति उमज् मय राग रह में सड्ध सदा- ऋतु रदिमि अद् घर ॥ 9 पुरुष सिह निक्चय शभ्रुतल में शिंह॒ वाहिनी नारी जय । तपल चाह रसना से तस्मय _ चाट रहा चिन्मय पद कुबलय ॥। [नारी




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