धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली | Dharmvarddhan Granthawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
475
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शाखाओं अथवा साहित्यिक परम्पराओं की पूर्ति के ठिए
किए ग्रन्थ रचना की है। जन भंडारों में की गई:ज्ञान
साधना ने विद्यारसिकों के छिए प्रचुर साहित्य-सामग्री
एकत्रित कर दी है। यह जन विद्वानों की एकान्त तपस्या
का ही फल दे कि बहुसंस्यक अनमोल प्रन्थ नष्ट होने से बच
गए हैं और वे अब भी स्वसाधारण के लिए सुख्भ हैं ।
राजस्थान के उब्धप्रतिप्ठ जैन विद्वानों एव' कवियों की
संख्या भी काफी बड़ी है । उन विद्वानों ने अनेक भाषाओं
म ग्रन्थ-रचना की है। जहां इन्होंने संस्कृत में ग्रन्थ लिखे
है, वहां प्राणत एव अपश्रशा को भी अपनी प्रतिभा की
भेंट दी है। टोकभाषा कीओर नो जंन विद्रानों का ध्यान
सदा से ही रहा है। यदी कारण हैकिराजम्थःनी जन
सादित्य की विशालता आश्चयंजनक है । प्राचीन राजस्थानी
साहित्य को तो जन विद्वानों की विशेष देन है ।
राजस्थान के जेन साहित्य-तपस्वियों में उपाध्याय
घमंवबद्धन का विशिष्ट स्थान है। ये एक माथ ही सद्धमं-
प्रचारक, समथं विदान ण्य सरम कविकेकूपमे प्रतिष्ठित
हैं। इनकी अपनी रचनाएं काफी अधिक हैं और वे संस्कृत;
पिंगठ एवं डिंगल आदि अनेक सापाओं में हैं। इतना
ही नहीं; इन्होंने अपनी रचनाओं में अनेक परम्पराओं का
सुन्दर निर्वाहं कर के अपने साहित्य को समप्रि-रूप से एक
विशिष्ट वस्तु अना दिया है; जिसके घिपय में आगे जरा
विस्तार से चर्चा की जाएगी ।
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