प्रत्यक्ष महासमर | Pratyaksh Mahasamar

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Pratyaksh Mahasamar by नरेन्द्र कोहली - Narendra kohli

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लक्ष्मणा समझ रही थी कि यह बलराम की विनोदी मुद्रा थी और इस समय वे ऐसी अनेक यातें कह सकते थे जो वे सुविचारित ढंग से कभी नहीं क्टेंगे। पर इसी मुद्रा में वे उसकी वात पूरी सहानुभूति से सुन भी सकते थे। ताऊजी वहाँ आर्यपुत्र को नहीं आपके प्रिय शिप्य को पीटने की तैयारी हो रही है। लक्ष्मणा अपने अश्रु नहीं रोक पाई । वचलराम का आहूलाद टिका नहीं रहा। लक्ष्मणा क॑ अथु उन्हें स्तव्य कर गए थे। क्या वात है पुन्नी तुम इतनी दुखी क्यों हो ? वलराम योले ऐसा क्या अघटनीय घट गया कि मेरी पुत्री की आँखों से अथु दुलक रहे हैं ? पांडवों का अज्ञात्वास पूर्ण हो गया है ताऊजी । वह चोली वे उपप्लव्य में प्रकट हो गए हैं तो अच्छा ही हुआ। वेचारे वड़े कप्ट में थे। वह तो ठीक है। लक्ष्मणा वोली किंतु अब वे लोग मेरे पिता से इंद्रप्रस्थ का राज्य मँगिंगे। पिता अपने राज्य की रक्षा करना चाहेंगे तो पांडव उन पर शस्त्र उठाएँगे। और उनके सबसे यड़े सहायक होंगे यादव । में यह कंस देखूंगी कि मेरा श्वसुरकुल मेरे पितृकुल का वघ करने के लिए शस्त्र उठाए। मैं अपने पति की आरती उत्तारकर उन्हें युद्ध में भेजैंगी कि वे जा कर मेरे पिता तथा मेरे भाइयों का वध कर के आएँ। और यदि युद्ध में वे उनका वध नहीं करेंगे तो क्या व अपने प्राण गँँचाएँ । में तो दोनों ही ओर से मारी गई ताऊजी। लक्ष्मणा के अश्ु इस चार कुछ अधिक ही समारोहपूर्वक वह निकते। यलराम को लगा कि वे लक्ष्मणा के अथ्रु नहीं देख पाएँगे। ऐसे में वे असंतुलित हो कर कुछ भी अटपटा काम कर सकते हैं। पहले तुम अपने अथ्रु पोंछो लक्ष्मणा स्वयं को सेंभालो पुत्रि चलराम योले तुम जो कुछ कल्पना कर बैठी हो अभी उसमें से कुछ भी घटित नहीं हुआ है। पांडव उपप्लव्य में वैठे हैं। वहां अभिमन्यु का विवाह हो रहा है। वे लोग विवाह की व्यवस्था में व्यस्त होंगे। न राज्य की वात है न युद्ध की । न कोई युद्ध करने गया है न कोई जा रहा है। तुम व्यर्थ ही व्याकुल हो रही हो । दुर्योधन तुम्हारा ही पिता नहीं है। वह मेरा परमप्रिय शिप्य है। तुम क्यों समझती हो कि वह असहाय है अनाध है अक्षम है। आप यहुत भोले हैं ताऊजी आप नहीं जानते कि वहाँ विवाह की आड़ में सैनिक तैयारियाँ हो रही हैं। मैंने देखा है सुभद्रा दूआ सदा ही अपने पुत्रों को युद्ध की शिक्षा देती रही हैं। युद्ध तो होगा ही तताऊजी । पर आप मुझे वचन दीजिए आप अपने शिप्य का वध करने नहीं जाएँगे। और सहसा ही लक्ष्मणा पर जैसे उन्माद छा गया केवल पांडव ही तो आपके संबंधी नहीं हैं। मेरे पितृकूल से भी तो आपका संबंध है। सुभद्रा बूआ अर्जुन की पत्नी हैं तो मैं भी तो आपकी पुन्रवधू हूँ। वताइए हूँ कि नहीं ? आप एक संबंध को स्वीकार करेंगे और दूसरे को अनदेखा कर जाएँ यह तो उचित 18 महासमर-7




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