पार्श्वनाथ का चतुर्याम धर्म | Pasharvnath Ka Chaturyam Dharm

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pasharvnath Ka Chaturyam Dharm  by धर्मानन्द कोसम्बी - Dharmanand Kosambi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about धर्मानन्द कोसम्बी - Dharmanand Kosambi

Add Infomation AboutDharmanand Kosambi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
७ सिद्धान्तेपि मौजूद है। जेनोंको ऐसा न समझना चाहिए कि उनका अदिंसा-ध्मे कुत्तों-बिछियोंके प्राण बचाने और आउद-बैंगन न खानेमें ही संपूरणं होता है; बल्कि विश्वव्यापी आर्थिक शोषण, असमानता, अन्याय, और अत्याचारके प्रतिकारमें अदिंसाका प्रयोग केसे किया जा सकता हैं और उसे कैसे सफल बनाया जा सकता है, इस कसौटीपर उन्हें अपने अदिसा-धमकिो खरां उतारकर दिखकाना दोगा । महात्मा गोधीने यह कर दिखाया, इसीलिए. अहिंसा-धर्म संसारमें सजीव और प्रतिष्ठित हो गया । धर्मज्ञ लोगोंको चाहिए कि वे धर्मकी चचाोकों व्याकरण और तकके दास्त्रार्थमेंस बाहर निकालकर और क्षुद्र रूद्योंको बचानेकी चेष्ठा छोड़कर उसे व्यक्ति एवं समाजके समग्र जीवनपर नवरितार्थ करके दिखायें ¦ घर्मानन्दजी कोसम्बी द्वाग इस दिद्यार्म किया गया यह पदला ही प्रयत्न है और इसलिए, विशेष अभिनंदनीय है । इस निबन्धकी प्रस्तात्रनामे पुराने जमानेके जनिर्योका मांसाहारसम्बन्धी उल्लेख आया है। मेरे देखते हुए यह चर्चा गुजरातरमे तीन बार बड़ी कटुताके साथ हुई है। किसीने यह तो नहीं कद्दा है कि प्राचीन समयते समी जेनी मांसाहार करते थे, पर जेन धार्मिक साहित्य यह उल्लेख निर्विवाद रूपसे पाया जाता है कि कुछ जेनी भासाहार करते थे । यह स्वाभाविक है कि आजके धार्मिक लोगोको इस बातकी चर्चा पसन्द न आए; क्योकि मांसाहार-त्यागके सम्बन्धमे सबसे अधिक आग्रह आजके जेनिर्योका ही है ओौर एक समाजकी हैसियतसे उन्होने अच्छी तरह उसका पाठनं भी कर दिखाया है । यह तो कोई कह नहीं सकेता कि मांसाहार धम्यं दहै। यह साबित करलेकी चेष्टा मी कोर नहीं करना चाहता कि पद्यं, पश्चियो, चकि, मुर्गियों, मछलियों, कंकड़ों आदि प्राणियोको मारकर अपना पैट भरना कोड्‌ महान्‌ कायं ॑है। इस सम्बन्धे बहस हो सकती है कि आचके ज़मानेमें सावंत्रिक मांसाद्दर-त्याग कहाँतक सम्भव है । मानव-जातिकी मन्दं प्रगतिको देखते हए आजी स्यितिमे मांणहारी सखेगोको धातकी, क्रूर या अधार्मिक कहना उचित नीं होगा । परन्तु इस विषयमे कीं मी दो मत नहीं हैं कि मांसाद्दार न करना दी उत्तम धर्म है। प्राचीन




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now