श्री जम्बू स्वामी चरित्र | Shree Jambu Swami Charitra k

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Shree Jambu Swami Charitra k by मूलचंद किसनदास कपाडिया -Moolchand Kisandas Kapadiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अम्बूस्थामी चरित्र हैं । सर्व ही मोगभूमिवासी रोग रहित, मलमूत्र नीहार रदित, बाधा रहित व खेद रहित होते ह ! उनफे शरीरम पसीना नहीं होता है ब उनको कोई आजीविका नहीं करनी पढ़ती है तथा वे पूर्ण भायुके भोगनेषषले होते है । बाकी ख्ियोंकी ऊंचई व भायु पुरुषों समान होती है ! जेसे करपवृक्षमें करपवेछें भासक्त होती हैं इसी तह ने अपने नियत पुरुषोपें अनुगग रखनेबाली होती हैं । जन्म परत दोनों प्रेमसे भोग संपदाकी भोगते हैं. सबे भोगभू मिवासी स्त्रगेके देवोंक समान स्वभावे सु्दर होते हैं । उनकी वाणी स्वमावसे मघुर होती है, लनही चेष्टा स्वभावत ही सुन्द होती है। वहां पृथ्वी, यक दश जातिके करःवृक्ष होते दै । उने वे मोगमु मवासी इच्छ नुक्‌ , नाहार, षर, बाद्त्ि, माला भूता, क्ख भादि भोगकरी भाग्री प्राष्ठक्र रेते है। श्षवृक्षा प्ते सदा ही मंद मंद सुरग'घत इवि हिते रहते दे | कतरे प्रमवसे व कत्री सामध्येमे ये कशपतृक्ष परगट हीनं है, कय इनमे पृण्णवान मानवो मनम भनुसार रुचिकर भार १५ दान है | हथ इनको विद्र नोन १ रपवृक्ष कहा 8 । इनक) जन] दश प्रकारको होती है | (१, माग (२) वाजि- ताग (३) भूषणाम्‌ (५) पुष्पमालंग (५) ज्वोततेग (६) दीपांग (७) गृहांग ८) भोजनांग (९) फात्रांग (१०) वखांग नैसे इनके नाम है वे ही वतु प्रकट करनेमें ये परिणमन करते हैं । भोग- भूमिवासी इन करणवूकषोंसे माप्त भोगोंको अपने पुण्पके उदबसे भाव ४




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