हरिवंश पुराणं पूर्वधर्म | Harivansh Puran Purvadhurm Ac 5959
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
450
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५)
मतमद्
इन संज्ञाओंके विषयमे कुछ मतभेद भी हैं, जिनका आचार्य इन्दरनन्दिने ‹ भन्ये जगुः ”
कहकर उल्लेख किया है >८ | कुछ्के मतसे जे गुह्ाओंसे आये थे, उन्हें 'नन्दि”, जो अशोकवनस अयि ये
उन्हें 'देव', जो पंचस्तूपोंसे आये थे उन्हें 'सिन' , जो सेमरके नीचेसे आये थे उन्हें 'वीर' और जो नागके-
सर वृक्षेकि नाँचेसे आये थे उन्हें ' भद्र ' संज्ञा दी गई । कुछके मतसे गुद्टानिवासी 'नन्दि”, अशोकवन-
निवासी ‹ देव ›, पंचस्तूपवाठे ^ सेन » सेमरवृक्षवाठे ‹ वीर ' जर नागकेसरवके ‹ भद्र ' तथा
* सिंह ' कहङये ।
पचस्तूप्यनिवासादुपागता येऽनगरिणस्तेषु । कोश्वित्सेनाभिख्यानन्कोचिद्धद्ाभिधानकरोत् ५ ९३ ॥
ये शात्मठीमहादुममूरायतयोऽभ्युपागतास्तेषु । कंधिद्रुणधरसंज्ञान्कोधित्रुपराह्वयानकरोत् ॥ ९४ ॥
ये लण्डकेसरवुममूढान्मुनयः समगतास्तेषु । कश्ि्सिहाभिख्यान्कोध्विचन्द्राह्वयानकरोत् ॥ ९५् ॥
> अन्ये जगुहायाःविनिर्गता नन्दिनो महात्मानः । देवाश्वारोकवनात्प॑च्तुष्यास्ततः सेनः ॥ ९७ ॥
विपुरतरशाल्मर्खाहुममूहगतागसवासिनो वीरा; । भद्राश्चखण्डकेसरतस्मूलानिवासिनो जाता; ॥ ९८ #
गुहायां वासितो ज्येष्ठो दिती योऽशोकवार्कात् । निर्यात नन्दिदेवाभिधानावायावनुक्रमात् ॥ ९९ ॥
परवस्तप्यास्तु सेनानां वीराणां दात्मीदुमः । स्ण्डकेस्रनामा च मद्रः सिंहोऽस्य सम्मतः ॥ १०० ॥
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