कोरे काग़ज | Kore Kagaz
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मे एक लडखडाहट-सी रहतो है, पर इस वक्त जो आवाज़ सुनी वहू ऊँची
नहीं थी, लेक्नि बहुत सब्त थी--
“कुल वा बेटा उसवे पास यडा है, वही से दुलाना नहीं पडेंगा ।”
जवाब मे चाचा पा स्वर वॉप उठा, “कया कहू रह हैं महाराज 1
वया पवज मर्नि देगा ?”
हाँ पवज अग्नि देश ।' निधि महाराज ने जवाव दिया, भौर साथ
ही कहा, आप लोग शव-यात्रा मे आना चाहूं तो ज़रूर मायें मुतक' आपके
कुल की गहलक्ष्मी है। '
“क्या कह रहे हैं महाराज ”--सगा, चाचा की आवाज हुनला गयी ।
बह रहा था, “यह अधम होगा महा राज ! गृहलकष्मी वो दत्तक पुत्र अग्नि
नहीं दिखा सकता . दत्तव पुत्र वश वा नाम घारण कर सबता है, जमीन
जायदाद मे से हिस्सा ले सबता है, पर अग्नि नही दे सकता.”
दे सकता है. ” निध्चिं महाराज का स्वर उठा । शायद हे कुछ
गौर भी कहना था, पर उनकी वात का काटती-सी चाचा यी भावाज़ आयी,
यह कौन स वेद में लिखा हुआ है, महाराज ?””
निधि महाराज का स्वर जितना धीमा था, उतना ही सहज और
सस्त भी, ' जिस दिन वेदो वे
पठन के लिए आमोगे, उस दिन |, हे कक नए ४»
बताकोंगा । इस वक्त जा सकते ४ कप, प्र ही
हा। चार बजे शव-यात्रा के
लिए भा जाना ।”
मृत दंहूं के
सिरहाने जल रहे दिये थी बाती
की तरह, मैं भी चुपचाप जल
रहा था
मैं कौन हूं * यह दत्तक पुत्र
क्या होता है? माँ ने निधि महा राज वो बुलाकर यह वयो कहा कि पकज
अग्नि देगा ? क्या उसे मालूम था कि कोई चाचा आर मुझे अरिन देने से
'रोकेगा
नह का
कोरे कागरज्ध / 7
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