कोरे काग़ज | Kore Kagaz

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Kore Kagaz by अमृता प्रीतम - Amrita Pritam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मे एक लडखडाहट-सी रहतो है, पर इस वक्‍त जो आवाज़ सुनी वहू ऊँची नहीं थी, लेक्नि बहुत सब्त थी-- “कुल वा बेटा उसवे पास यडा है, वही से दुलाना नहीं पडेंगा ।” जवाब मे चाचा पा स्वर वॉप उठा, “कया कहू रह हैं महाराज 1 वया पवज मर्नि देगा ?” हाँ पवज अग्नि देश ।' निधि महाराज ने जवाव दिया, भौर साथ ही कहा, आप लोग शव-यात्रा मे आना चाहूं तो ज़रूर मायें मुतक' आपके कुल की गहलक्ष्मी है। ' “क्या कह रहे हैं महाराज ”--सगा, चाचा की आवाज हुनला गयी । बह रहा था, “यह अधम होगा महा राज ! गृहलकष्मी वो दत्तक पुत्र अग्नि नहीं दिखा सकता . दत्तव पुत्र वश वा नाम घारण कर सबता है, जमीन जायदाद मे से हिस्सा ले सबता है, पर अग्नि नही दे सकता.” दे सकता है. ” निध्चिं महाराज का स्वर उठा । शायद हे कुछ गौर भी कहना था, पर उनकी वात का काटती-सी चाचा यी भावाज़ आयी, यह कौन स वेद में लिखा हुआ है, महाराज ?”” निधि महाराज का स्वर जितना धीमा था, उतना ही सहज और सस्त भी, ' जिस दिन वेदो वे पठन के लिए आमोगे, उस दिन |, हे कक नए ४» बताकोंगा । इस वक्‍त जा सकते ४ कप, प्र ही हा। चार बजे शव-यात्रा के लिए भा जाना ।” मृत दंहूं के सिरहाने जल रहे दिये थी बाती की तरह, मैं भी चुपचाप जल रहा था मैं कौन हूं * यह दत्तक पुत्र क्या होता है? माँ ने निधि महा राज वो बुलाकर यह वयो कहा कि पकज अग्नि देगा ? क्या उसे मालूम था कि कोई चाचा आर मुझे अरिन देने से 'रोकेगा नह का कोरे कागरज्ध / 7




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