भारत वर्ष में लघु उद्योगों के वित्तीयन का आलोचनात्मक मूल्याँकन | Bharat Varsh Me Laghu Uddyogo Ke Vitteeyan Ka Alochanatmak Mulyakan

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Bharat Varsh Me Laghu Uddyogo Ke Vitteeyan Ka Alochanatmak Mulyakan by डॉ एच के सिंह रीडर - Dr. H. K. Singh Reedar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लघु उद्योगों का उत्पादन - 1973-74 और 1999-2000 के दौरान लघु स्तर इकाइयों की संख्या 4.2 लाख से बढकर 32.25 लाख हो गयी | इसी अवधि में इस इस क्षेत्र में रोजगार की मात्रा 40 लाख से बढकर 178.5 लाख हो गयी और उत्पादन 72 00 करोड रूपये से बढकर 5 78 460 करोड रूपये हो गया । 1980-81 से 1990-91 के दौरान लघु स्तर क्षेत्र मे रोजगार मे औसत वार्षिक वृद्धि 5.8 प्रतिशत एवं उत्पादन के 18.67 प्रतिशत होती है। 1990-91 और 1999-2000 के दौरान उत्पादन मे वृद्धि दर 15.7 प्रतिशत एवं रोजगार की वृद्धि दर 4% रही । इससे यह विश्वास परिपक्व हो जाता है कि अतिरिक्त श्रम को रोजगार दिलाने के लिए लघु स्तर महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते है। 1981-82 की कीमतों पर छोटे पैमानें के क्षेत्र का उत्पादन 1980-81में 30 810 करोड रूपये से बढ़कर 1990-91 में 85 025 करोड रूपये हो गया । इस प्रकार इसकी औसत वार्षिक वृद्धि दर 11.7 प्रतिशत होती है जो इस काल के दौरान बड़े पैमाने के उत्पादन की 8.7 प्रतिशत वार्षिक की वृद्धि दर से कही ऊँची है। 1990-91 और 1999-2000 की नौवीं वर्षीय अवधि के लिए लघु स्तर क्षेत्र के उत्पादन 1990-91 की कीमतों पर की औसत वार्षिक वृद्धि दर 8.1 प्रतिशत थी अर्थात्‌ 1 55 340 करोड रूपये से 3 12 576 करोड़ रूपये । इस अवधि में रोजगार की वृद्धि दर 4 प्रतिशत प्रति वर्ष थी । दोनों सूचकों से स्पष्ट है कि लघु क्षेत्र का निष्पादन बडे पैमाने की तुलना में उचित है। ध्यान देने योग्य बाते यह है कि लघु स्तर क्षेत्र के उत्पादन में बड़े पैमाने के क्षेत्र की तुलना में अधिक तीव्र गति से वृद्धि हुई । सत्य है समग्र औद्योगिक उत्पादन में मन्द गति की तुलना में लघु क्षेत्र का निष्पादन सराहनीय है। इस तथ्य का हमारी राष्ट्रीय आर्थिक नीतियों के सन्दर्भ में विशेष महत्व है। यदि लघु क्षेत्र को बड़े जोर का धक्का दे दिया जाये तो वह भारत जैसी पुँजी न्यून अर्थव्यवस्था में उत्पाद पुूँजी अनुपात की ऊँची दर एवं रोजगार पूँजी अनुपात की ऊँची दर द्वारा एक स्थायीकारी कारण तत्व 519॥आए नि#ण बन सकता है। 8




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