नैदानिक परिक्षण एवं उपचारात्मक शिक्षण | Nidanatmak Parikshan Aur Upcharatmak Shikshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5 झायु श्ौर उनके समावित उपलब्धि स्तर वो ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए जिससे दि वे ठोस यर व्यावहारिक हो । इन उद्दृश्या में सूचनात्मक विदु झर्थाव नान, कौशल एक अभिरुचि जिनका कि विकास किसी विशिष्ट प्रकरण या विपय वे माध्यम से क्या जा सकता है, वा उल्लेख श्रवश्य किया जाना चाहिए । कक्षागत उद्देश्य समस्त शक्षिक प्रक्रिया से सम्वाधित होतं ह श्रत उन्दी दी पूति करते सामाय उदेश्य सीवे नदौ होते जवविः कक्षागत विशिष्ट उद्देश्य प्रत्यक्ष, निश्चित एवं व्यावहारिक होते हैं। बक्षागत उदेश्य हम एसी शिक्षण प्रक्रियाग्ा को झपनी पसद के अनुसार श्रपनाने का आधार प्रस्तुत करते हैं जिनम कि बालका को उपयुक्त शक्षिकं झनुभव प्रदान करने वी क्षमता होती है । थे उदूश्य उन प्रमासा की ओर निर्देश करते हैं कि जिहें यहू निधारित करने के लिए काम म लाया जाता है कि कक्षा में सम्पत्त हुए काय दारा वह सब रुख किस सीमा तक प्राप्त कर लिया गया है जिसके लिए कि पूव मे ही उस काय द्वारा होने वाली उपलब्धि का श्रनुमान लगाया गया था । खददेश्यों का निर्माण एव निर्धारण किसी भी शिभस उद्देश्य को वालक म हाने वाले परिवतना को ध्यान मे 'रखते हुए निधारित क्या जाना चाहिए। उद्देश्य के निर्धारण के साथ ही यह भी लिखा जाना चाहिए गि वह विपय वस्तु श्रौर क्षेत्र झसुव भ्रमुव होंगे जिनके द्वारा कि छात्रा मे झमुव झमुक व्यवहारगत परिवतन नं का भ्राशा की जा सक्ती है। उददेश्य का परिभापोकरण कसी भी उद्देश्य के उल्मेस मानसे ही शिण या वालक कै सीखन नी प्रक्रिया हवत ही सफल हो जविगी यह वात केभी भी नहीं बढ़ी जा सकती है । उद्देश्या को यदि ठीक तरह उनके द्वारा सम्पन हो सक्ने वाने छात्रा के व्यवहारगत परिवतना। मरै साय दिया जावगातो वे अध्यापक कौ एवः रुपष्ट दिशा का निदंशन अवश्य कर सकेंगे । यति उस झोर वह छात्र को ले गया तो निश्चित ही छात्र की शिक्षा सरल रुप म हुई समभी जा सकेगी । इसीलिए उद्देश्य वो लिसतं समय अधिक बल उन उद्देश्यों के द्वारा छात्रा म हो सकते वाले व्यवहारंगत परिवतना पर दिया जाता है। प्रत्येश उद्देश्य के साथ-साय उसके द्वारा होन घाते प्रपधित परिवननों वा उल्लेख जितना शिक्षण वी हप्टि से ्रावश्यक है उतना ही परीक्षण थी हप्टि से झावश्यक है ! श्रत उददश्यनिप्ठ शिक्षण श्रौर परीक्षण के लिए यह नितान्त भावश्यक एवं अ्निवाय है कि उदश्या वा स्पष्टतः परिभापोक्रण क्या जावे और इसके लिए उद्श्य क' साय-साय ही उसके अझपसित परिवतन भी नये जावें । इतना ही नहीं इसे श्रौर भी झधिव व्याप एव व्यावहारिक बनाने की दृष्टि स यह भी भावश्यर है कि उस विषयवस्तु या पाव्य वस्तु का श्री प्रत्यक




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