गौतम परिच्छा | Gotam Prachchha

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Gotam Prachchha  by यतीन्द्रविजयजी - Yatindravijayji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९) ' वान होते है, और दुर्ुद्धि की तरह कहीं झा दर नहीं पाते । ५ डॉ ०. हितेपि ; १६ भ्रन-दे जगज्जीवहितेपिन्‌ 1 किस कर्म से जीव पंडित होतेदे? - , उन्तर--गोतम } जो बृद्धो की सेवा करते हैं, पुरय और पाप को जानते है, शाख देव शुरु आदि की भक्ति करते हैं वे जीव मर कर पंडित होते हे । क दूँ रिफ३के १७ परश्न-हे जगदार्तिविदान ! किस कर सें जीव मूर्ख होते हें ? = आ, उत्तर-गोतम ' 'जो ऐसा बोलते है कि महाशयो ! चोरी करो, मांस खायो, मेदिरा पान करो; पढने से कया होता है; धर्म करे. से छय.रयदा नी होता, वे-जीव भृः




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