अध्ययन चतुष्टय | Adhyan Chtushtya

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Adhyan Chtushtya by यतीन्द्रविजयजी - Yatindravijayji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५. मन गमते ( लद ) मिते हण ( सादीण॒ ) स्वावीन ( भोए ) विपय-सोगों से ( विपिडिकृव्यद ) सुख फेर लेता दे ( य ) धीर (चह) योद रैता दे (से ) वह (हु) निश्चय से ( चाहत्ति ) त्यागी ( चुच्च ) कद्दा जाता है | --विपय-भोगों को जो पुरुप छोड़ देता है, चद्दी घसली त्यागी कदा जाता है। यहाँ टीकाकार पूज्यपाद श्रीदरिमद्रदरिजी अदाराप फरमाते हैं किन ५ श्मत्यपरिदीणो परि मजे टिघ्ो विपि लोगमाराणि प्रणी उद्ग भदित्ाश्नो य परिचियतो चाई ति । “ धन धल रादि सामयी से रदित चारितयान्‌ पुरुष यदि शोक मे सारभूत श्रपी, जल शरीर खी इन तीनों को मर्या छोड़ दे तो वदद त्यागी कहां जाता है । क्यों कि-ससार में 'अपरिमित घनराशी मिलने पर भी अभी, जल 'गीर स्त्री का त्याग नष्टौ हतो सकता, श्रवण्य तीनों चीजों को छोडनेयाला भन छीन पुरुष भी त्यागी ही है | ायारयादी चय सोगमल्न, कामे कमा कमिय सु दुक्ख । विदादि दोप गिणणएज राग, ण सुदी दोदिति सपराए॥५॥ शब्दाथ-{ श्ायाययादी ) ्ठापना ते ( सोगमन्न ) सुकमारपने को ( चय ) छोड़ ( कामे ) विपय यासभा को ( कमादी ) उलपन कर ( खु ) निश्रय से ( दुक्ख ) दुख का ( कपय) नारा हूष्रा समक ( दोस ) टेप विकार को ( छिंदाहि ? नारा कर ( रागें ) मेमराग को ( विशएज ? दूर




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