मोक्षशास्त्र अर्थात तत्वार्थ सूत्र | Moksh Shastra Atharth Tatvarth Sutra (satik)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न सोशमार्गका न्वशन प्रूणं दोने पर व्न्तमें दसवें छष्यायमें-नवसूज्नों द्वारा मोछ- शश्च श्रपन करके श्री आत्वार्यदेवने यदद शासन पूरा किया दै । ‰ सक्तेपमे देपनेवे शस शाखे निश्चयसम्यग्दशेन-सम्यश्छनि-सस्यक्र- पवारितरूप मोक्तमामे, प्रमाण नय नित्ेप, जीव - श्रजीवादि सात वरर ऊच्वै मध्य भोय्‌ तीन तोर, चार गत्तिया, दह्‌ द्रव्य शरीर द्रव्य-गुणा-ग्रीय--इन सथष्ा एवरूप श्नाजाता ष । इस प्रकार धाचायं भगवातने इस शाखं ववलतात- का भण्डार बढ़ी खूबीसे भर दिया है । ६ “तत्वार्थ श्रद्धान सम्यग्दशेनम्‌' यह्‌ सूत निन्य सम्यग्दुशत्तके लिये है, ऐसा प० टोडरमल्लजी मो० मा० प्रकाशक झ० ६ में कहते हैं -- (१) जो सरवाये श्रद्धान विपरीतामिनिवेश रॉदित जीवादि तर्वाधोंका श्रद्धानपना सो सम्यर्दर्शनका लक्षण है सम्यग्द्शीन लदय दै सोई 'तत्वाथेसूत्र बियें बहा दै-- (व्वा भदधानं सम्यग्द्नम्‌' ॥ १-२ ॥ घहुरि पुरुपार्थ सिदुध्युपायके विनें भी ऐसें ही ऋद्या है । जीब्राजीवादीनां त्वार्थाना सदेव कर्तव्य । श्रद्धान विपरीतामिनिवेशविविक्तमात्मरुपतद्ू ॥२२॥। याका अर्थ-विपरीतामिनिवेश करि रद्दित जीव अजीब 'ादि तत्वाधनिफा श्रद्धान सदाफाल फरना योग्य दे । सो यह श्रद्धान श्ात्माका स्वरुप है | दुरोन सोद उपायि दुर भये प्रगट होय है, तातें आत्माका स्वरूप है । चतुरादि गुणस्थान विवे गट हो है । पीठे सिद्ध अस्या विप भी सदरा- काल याका सदूभाव रहै ह, ऐसा जानना” । ( देदलीे प्रकार, मोत्तमाम प्राशक प° ४००-४५१ ) इस सम्बन्धे पए ४७५ चे ७० में पठ टोडरमलङ्ञी विशेष कदते हैं कि -- मुरि भ्रप्न-जो शदमस्यकं तौ शप्रतीति प्रतीति कना सम्य ६, सरत तक्षं सप्त तश्वनिकी अ्रतीति सम्यदस्वफा लक्षण कद्या सो हम मान्यौ, परन्तु केषल्ली चिद




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