विराज बहू | Viraj Bahu
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विराज वहू
नीलाम्बर भी हंसने लगे-“मैं वया बहाना करके उठ जाता ह?
विराजे कहा- उ्ै, एक दिन भी नरी । ठेवा वारेप त्तौ
तुम्हारे दुश्मन भी नहीं लगा सकगे ! इसके लिए मुझे वितभे दिन उप
यास करना पड़ा है, यह तो छोटी धट् जानती है 1... ० है, यह क्या, वस
था लिया?“
पंचा फेककर विराज मे दूघ का कटोरा जोर से पकड़कर कहा-
“भिरे सिर की कमम हे तुमको, उटो मरत ।,..जल्दी जा प्री, छोटी बह
से दो सब्देश तो माँग ला । न, न, गर्दन हिसाने से काम नहीं चनेगा।
अभी चुम्हारा पेट नहीं भरा है । मंया री, मैं कहती है कि अगर उठ गए
तो मैं खाना नहीं साऊगी । कस रात को एक बजे तक जागकर मैंने
सब्देश बनाएं हैं ।””
दौडती हुई हरिमती गई और एक तशतरी में बहुत से सन्देश
लाकर नीलाम्बर के सामने रस दिए 1
नीलाम्बर ने हँपते हुए कहा--“अच्छा बताओ, इतने सन्देश
कया र्म अकेला घा सक्तां ?
तदतरी की ओर देखकर विराज ने तिर प्ुकाकर कहा “वात-
चीत करते-करते धीरे-धीरे खाओ, खा सकोगे ।'”
नीलाम्बर ने कटा- “तो खाना ही पडेगा |“
विराज ने कहा--''हाँ । अगर मछली खाना छोड़ दोगे तो ये
घीजें कुछ अधिक मात्रा में लाती पड़ेंगी 1”
तदतरी करीव खीचकर् नीलाम्बर मे बह्ा-“तुम्हारे घुल्म के
कारण तो जी चाहता है कि किसी वन में भाग जाऊ +”
पूटी रो पड़ी-“दादा, मुझे भी ,..।*
विराज ने धमकाते टुए कहा--“'चुप रह जलमु ही ! लाएंगे नहीं
सो कंसे जिन्दा रहेंगे । ससुराल जाने पर इस शिकायत छा पठा
चत्तेगा 1”
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