हिन्दू त्योहारों का इतिहास | Hindu Tyoharon Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लि 'दिन्दू सही के दान इस तिथि पर बहुत शुभ मानां गया है । इस एकादशी का नाम पटूतिला एकादशी है। इस एकादशी को तिल का तेल मल कर स्नान करते हैं, तिल दी से दोम करते हैं, तिल दी पीने के पानी में डालते हैं, तिल दी का भोजन करते हैं श्रीर तिल दी दान देते हैं। भविष्यपुराण में इसकी एक कथा है। उसमें लिखा है, एक दिन नारद जी बैकुरठ में श्रीकृष्ण के पास गए श्र उनसे जाकर यह पूछा कि पटुतिला एकादशी का मादात्म्य वताइपए । श्रीरुष्ण ने कहा कि पहले स्त्युलोक में एक बहुत शत करने वाली घ्राह्मणी थी । उसने उपवास श्रौर विप्णु- भक्ति में श्रपना शरीर टुबेल कर लिया था। एक दिन चिप्णु स्वयं सिखारी वन कर उसके दरवाज़े पर गए श्रौर सिद्ता माँगी । घ्राह्मणी ने कोध करके एक मिट्टी का ढेला उनके खप्पर में डाल दिया । इस मिट्टी के ढेले को लेकर वे येकुणठ चले श्राए । कुछ दिनों के वाद जब घ्राह्मणी स्वर में झाई तो, मिट्टी के दान के कारण स्वगं में उसे बदुत श्रुच्छा घर रददने को मिला, किन्तु उसके झ्न्द्र खाने-पीने को कुछ भी न था । इस पर चह विष्णु जी के पास श्राकर शिकायत करने लगी श्र पूछने लगी कि जब मैंने सत्यु- लोक में इतनी भक्ति की, तो फिर क्यों सुभको वैकुरठ में सुख नदीं है? विष्णु जी ने कहा कि इसका कारण तुम्हें देव-खियाँ बतापँगी । देव-ख़िंयाँ से जब 'उस ब्राह्मणी ने




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