तरंगित ह्रदय अथवा विचार तरंगमाला | Tarangit Hriday Athwa Vichar Tarangmala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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No Information available about पं॰ देवशर्मा जी - P. Devsharma Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द लसस्कार
सिचपय नप्रस्कार कर्तेके श्रोर कुद कव्य ही नही र्हा ।
कक छ
तुम्हारे खिवाय इस डुनिशमें शोर कोई लमस्करण्य
नहीं है। यह में जान गया हूँ । सेरा सिर संसारमें जहाँ कहीं
सुकरता है वहां तुम्हारा पवि प्रकाश पाकर ही शकता है। जहाँ
तुम्हारा प्रकाश नहीं है वहाँ यदि कोई बलानकास्ते शी
भेरा सिर छुकाना चाहना है--उंडेके जोरसे अुकानः चाहता
है, बन्दुकोौ शौर तोपौका भय दिललाकर युकाना चाहता
है तब भी नही सकता । मालूम पड़ता है कि मेरा सिर टूट
जायगा पर झुकेगा नही । किन्तु कही पर यदि तेरा कुछ भी
प्रकाश दीख जाता है तो न जाने किस जादूसे मेरी इसी गदनमें
वह लचक प्रकर होती हे कि तुरन्त तेरे प्रकार रूप वर्णों
मेरा सिर जा पड़ता है ।
ऐसा मालूम होता है कि मेरे खिरका यह खामाबिक घर्म है
छोर तुम्हारे अकाशें मेरे सरतक के लिये कोई स्वाभाविक चु-
स्वक शक्ति है जिस के कारण खिर दिना नमे रह हीनहीं सकता ।
इख भ्रकारके सतत अजुभवसे मैंने यह जाना है कि तुम्दारे
सिवाय खंसाप्में छोर कोई नमस्करणीय नहीं है ।
(| (|
में यह भो जान गया हूँ कि इस विश्वके सबझे सब नम-
स्कारोके एक मात्र भाजन मी तुम्हीं दो! खच्वे दिलसे जो
कोई भी नमस्कार जिस किीके भी प्रति किया जाता हे दे
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