श्रद्धाकुसुम | Shraddhakusum
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भीम अमीचन्द मुनि भला, कोदर दिव बृदिकारी हो,
रामसुख रलियामणो, श्रमण पञ्च सिरदारी हौ}
जाप परम जदाघारी हो 1 भजो सुनि ॥ १७ ॥
शिव मद्खल सुख साहिब, सम्पति समय चुघारी हो,
अधिके आनन्द सुजदा भलो, होवे हषं अपारी हो 1
एहबो भजन उदारी हौ ॥ भजो सुनि ॥१८॥
उदधि अगन अरि चिप तणो, सकल विघन परिहारी हो,
सत्य शील प्रभाव जिन कहयो, तिमहिज भजन तंत सारी हो ।
प्रम मच्रसम धारी हो ॥ भजो मुनि० !! १६१
तस्कर चासं न पराभवे, चर्चा मे जयकारी हो,
भत रोग आपद हरे, अघ दल खूप परिहारी हो।
समरण महासुखकारी हो । मजो मुनि ॥२०॥
चन्दन्षति सूत्र नी, गाथा इ्तीय विचारी हो,
तिमहिज भजन ए ऋषि तणो, अधिष्ठायक अधिकारी हो 1
थिर हढ आसता थारी हो 0 मजो. सुनि० ॥ २१॥
दवदन्ती सुरि दीपती, जयवन्ती जशघारी हो,
इन्द्राण्या सुरि मादि देः साज करण सुखकारी हो।
पुण्यवन्ती प्यास हो ॥ भजो सुनि० ॥ २२॥
गुणठाणे चौथे गुणी, श्रमण सत्या हितकारी हो,
अ० सिऽ मा० उ० सा० ने सदा, प्रणमे बारम्बारी हौ 1
आणी हर्ष उपारी दहो ॥ भजो मनि० 1 २३ ॥
श्री जिन-लासन शोभतो, अधिष्ठोयक अधिकारी हो,
अहो निशि अवधि पर भूः क्षता, बात पूरण हारी हो !
सुख सम्पति सहचारी हौ ।॥ मजो मुनि० ॥ २४॥
सिणगाराजी मोटो सती, हरखुजी हितकारी हो,
मातो तास सुहामणी, अणसण चरण उदारी हो।
साराघ्यौ इक्तारी ॥ भजो मुनि! २५॥
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