श्रद्धाकुसुम | Shraddhakusum

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भीम अमीचन्द मुनि भला, कोदर दिव बृदिकारी हो, रामसुख रलियामणो, श्रमण पञ्च सिरदारी हौ} जाप परम जदाघारी हो 1 भजो सुनि ॥ १७ ॥ शिव मद्खल सुख साहिब, सम्पति समय चुघारी हो, अधिके आनन्द सुजदा भलो, होवे हषं अपारी हो 1 एहबो भजन उदारी हौ ॥ भजो सुनि ॥१८॥ उदधि अगन अरि चिप तणो, सकल विघन परिहारी हो, सत्य शील प्रभाव जिन कहयो, तिमहिज भजन तंत सारी हो । प्रम मच्रसम धारी हो ॥ भजो मुनि० !! १६१ तस्कर चासं न पराभवे, चर्चा मे जयकारी हो, भत रोग आपद हरे, अघ दल खूप परिहारी हो। समरण महासुखकारी हो । मजो मुनि ॥२०॥ चन्दन्षति सूत्र नी, गाथा इ्तीय विचारी हो, तिमहिज भजन ए ऋषि तणो, अधिष्ठायक अधिकारी हो 1 थिर हढ आसता थारी हो 0 मजो. सुनि० ॥ २१॥ दवदन्ती सुरि दीपती, जयवन्ती जशघारी हो, इन्द्राण्या सुरि मादि देः साज करण सुखकारी हो। पुण्यवन्ती प्यास हो ॥ भजो सुनि० ॥ २२॥ गुणठाणे चौथे गुणी, श्रमण सत्या हितकारी हो, अ० सिऽ मा० उ० सा० ने सदा, प्रणमे बारम्बारी हौ 1 आणी हर्ष उपारी दहो ॥ भजो मनि० 1 २३ ॥ श्री जिन-लासन शोभतो, अधिष्ठोयक अधिकारी हो, अहो निशि अवधि पर भूः क्षता, बात पूरण हारी हो ! सुख सम्पति सहचारी हौ ।॥ मजो मुनि० ॥ २४॥ सिणगाराजी मोटो सती, हरखुजी हितकारी हो, मातो तास सुहामणी, अणसण चरण उदारी हो। साराघ्यौ इक्तारी ॥ भजो मुनि! २५॥ - ७ -




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