श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण | Shreemadwalmikiya Ramayan

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Shreemadwalmikiya Ramayan by चंद्रशेखर शास्त्री - Chandrashekhar Sastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१.१ शरगेयकारभ ४अ पञ्चमः सगं; ५ | हता ठ तं भीमवलं विराधं राप वने । ततः सीत परिष्ेज्य समाश्वास्य च वीर्यवान्‌॥ ९ ॥ अत्रवीद्‌ परातर रापो लक्ष्मणं दीप्ततेजश्रग्र 1 कए घनमिदं दुर्ग न च स्मो वनगोचराः ४ २॥ अभिगच्छामहे शीघ शरभङ्गं तपोधनम्‌ । श्रा्रमं शरभङ्गस्य राधवोऽभिनगाम ह ॥ ३ ॥ तस्य॒ देवभभावस्य तपसा भवितासरनः । समीपे शरभङ्गस्य ददशं महद दधतम्‌ ॥ ४ ॥ ड ९ $ विश्राजमानं वपुषा सूयवन्ानरमभमू । रथपरबरमारूढमाक्राशे विबुधाद्गम्‌ ॥ ५ ॥ श्रसेरपृशन्ते पुथ ददे विुधेषरम्‌ । सेमभाभरणं देवं विरजोम्बरधारिणम्‌ ॥ ६ ॥ ट्रिपेरेव न ७ ¢, ५ त व्हूमिः परञ्यमानं यहारमभिः । हसिर्वानिभिघयक्तपन्तरित्तगतं रथम्‌ ॥ ७ ॥ ददरशाद्रतस्तस्य तरुणादिल्यसंनिमग्‌ । पाणडुराश्रघनपरूयं चन्द्ररण्डलसनिभम्‌ ॥ ८ ॥ दअपष्यद्विमले छनं चित्रमादयोपशोमितम्‌ । चामरव्यजने चाग्नये सुवमदरडे महाधने ॥ ६ ॥ हीते बरनारीभ्यां धूयमाने च पूर्भनि । गन्धर्ामरमिद्धा्च वहवः परमपेयः ॥ १० ॥ ्न्तरिक्षगतं देवे गीभिरपूयाभिरेडयन्‌ । सह संमापपरारो तु शरभङ्गेन वासवे ॥ ११ ॥ षठा शतक्रतुं तत्न रामो लक्ष्मणपन्रवीत्‌ । रामोऽथ रथषदिश्य श्ातुदंशेयता्तम्‌ ॥ १२॥ अिष्मन्तं भरिया लु्टमद्‌ युतं पश्य लक्षण ! भतपन्तमिवादिलयषन्तरिक्नगतं रथम्‌ ॥ १३ ॥ महाबली चिसाध रात्तसङ्ा वने मारकर पराक्रमी रामचन्द्रने सीताका श्रालिङ्गन किया श्नौर विसाधके भयसे मयमीत सीताका यय्‌ द्र किया ॥ १ ॥ रामचन्द्र तेजसी माई ` लद्मरणसे बोले--यद वन वड़ा डखदायौ श्रौर भयानक है, चलने येएग्य नी दै, दम लेगोनि इसके पदे पेखा वन देखाभी नहीं है ॥ २॥ अरव दमलाग यदास शोग्र तपसौ शरभंग यहां चले । श्ननन्तर समचन्द्र शरभगके आ्र्रममे गये ॥ ३॥ देवताके समान प्रभाववाले तथा तपस्याकें द्वारा घ्रह्मसाक्षात्कार-पाप्त शरभंगके यहां रामचन्द्रने अद्भुत तान्त देखा ॥४॥ शरीरकी कान्तिसे आकार शयित दे रदे है, खयं शरोर अ्निके समान तेजसी दे, वैवगण उनके छनुयायी हैं, ऐसे देवराज श्रेष्ठ रथपर बैठे हैं, वह रथ एथिवी का नहीं छूता, उनके गहने वड़ेह्दी दीप्तमान हैं झोर कमी मैले न हेनेवाले बद उन्दने धारण कयि हे ॥५॥६॥ श्रौर उन्दींके समान मदात्मा उनकी पूजा कर रहे ह 1 उनके रथम हरे धोड़े छते इट थे, वह्‌ पृथिवीसे ऊपर ध्राकाशमे दी था, वद चन्द्रमाके खमान गेला था, एवेतमेधके समान उसका रगथा शरोर भरो खू्॑के खमान दी्मान था 1 रामचन्द्र अपनेसे थोड़ी दुरपर पेसा स्थ देखा ॥ ७ ॥ ८ ॥ उन्होंने पयेतद्धन देखा, जिखमं सेनेके परल ओर माला वनी इई थी, दामी सेनेके दण्डेवाले शरेष्ठ चामर श्र पले दे देवाज्नापँ लिये इई है ओर इन्द्रपर इया रदी है । इन्द शरमंगके साथ बातें कर रहे हैं ्ौर गन्धर्व, देवता, सिर तथा झनेक ऋषि झाकाशमें स्थित उन इन्द्रकी श्रेष्ठ वाशियांसे स्तुति कर रहे हैं॥ ३॥ १०॥ १९॥ वा शरभंग के झाश्ममे इन्द्रको देखकर रामने लदमणसे कहा श्रौर स्थका लस्यकर के उसकी चिचिन्नता उन्देनि लदमणकेा दिखायी ॥ १२॥ लच्मण, इस रथके देखा, कितना चमकीला दै, किंतना उन्दर है, यह्‌ रथ आकाशम सूयक समान




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