सद्विचार मुक्तावली | Sadvichar Muktavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कमेवीर !
जच ए पाकर जनम लग कभी |
देशकी श्रोजाति की होगी भलाई भी तभी ॥ ११॥
( अयोध्या्तिह उपाध्याय )
कमे वीर ¦
कम वीर क्या कभी हुदय में कोई भी भय खाता है ।
जा पथ पकड़ा प्रण कर उस पर् सन्तत बरदता जाता हे ॥।
हों सावन त्ममथि रजनी चये हुये नममें हा धन घोर् |
मंगावात प्रचादित दो करते हो और वन्य पशु शोर ॥
जब कि निविड तम अखिल विश्व-तल कोही सरके जातारे |
कम्मे वीर कया कभी छुदय में तन भी कुछ भय खाता है ||
पथ में कंटक फैल रहे हों तरु समूहद्दो जड़ा हुआ |
इतस्वतः दो घोर सघन बन का कुलालसा पढ़ा हुआ ॥
नद् न्ते हो शोर सचति करके रव भौपण चिक्कार् |
कल यामिनी ङष्ण फरो छो नचा करे यदि भय सञ्चार ॥
तव भी पग क्या पीछे दटता मन क्य। शुका लताहै।
कम्म वार् क्या कभी हृदय में कोई भी भय खाता है ॥
विज्नननन्द॒काठिन्य कालसा खास मुख पर वाह नहीं |
कार्य करेंगे सिद्धि मिलेगी अभी मिले सो च.े नहीं ॥
ये
ममता-घारा का जगतीतल में करदेंगे पुन प्रवाह
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