सद्विचार मुक्तावली | Sadvichar Muktavali

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Siduchar Muktavali by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कमेवीर ! जच ए पाकर जनम लग कभी | देशकी श्रोजाति की होगी भलाई भी तभी ॥ ११॥ ( अयोध्या्तिह उपाध्याय ) कमे वीर ¦ कम वीर क्या कभी हुदय में कोई भी भय खाता है । जा पथ पकड़ा प्रण कर उस पर्‌ सन्तत बरदता जाता हे ॥। हों सावन त्ममथि रजनी चये हुये नममें हा धन घोर्‌ | मंगावात प्रचादित दो करते हो और वन्य पशु शोर ॥ जब कि निविड तम अखिल विश्व-तल कोही सरके जातारे | कम्मे वीर कया कभी छुदय में तन भी कुछ भय खाता है || पथ में कंटक फैल रहे हों तरु समूहद्दो जड़ा हुआ | इतस्वतः दो घोर सघन बन का कुलालसा पढ़ा हुआ ॥ नद्‌ न्ते हो शोर सचति करके रव भौपण चिक्कार्‌ | कल यामिनी ङष्ण फरो छो नचा करे यदि भय सञ्चार ॥ तव भी पग क्या पीछे दटता मन क्य। शुका लताहै। कम्म वार्‌ क्या कभी हृदय में कोई भी भय खाता है ॥ विज्नननन्द॒काठिन्य कालसा खास मुख पर वाह नहीं | कार्य करेंगे सिद्धि मिलेगी अभी मिले सो च.े नहीं ॥ ये ममता-घारा का जगतीतल में करदेंगे पुन प्रवाह




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