मेरे प्रिय संभाषण | Mere Praiy Sambhashan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.11 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लिए दासितों की लई पीढ़ी का ऐसा विकास से अधिक शवाजनक है क्योकि वह विकास विजेता की निर्णीत जय को अनिर्णीत करने और उसे पराजय में बदलने की शक्ति रखता है । भारत मे स्वतश्रता-प्राप्ति के उपरात भी शिक्षा के क्षेत्र मे लक्ष्यत और बा्येत परिव्तेंत नहीं किया जा सका परिणामत्त आज निर्माण की बेला मे वही क्षेत्र अधिक अदात अस्थिर और विघटमशील है । आधुनिक युग में छात्र वर्ग का असतोप विदद-व्यापक हो गया दै परतु उसके देशज कारणी और परिस्थितियों मे अतर है । जिन देशी मे शरोर मुक्त है पर मन बधन में है वहा भी और जहा मन मुक्त है पर शरीर पर कठिन नियत्रण है वहा भी शिक्षा का झंत्र ही हलचलों का कद है । कही सामाजिक बघन टूटे हैं कही मानतिक नियत्रण शिथिल होता है कितु टूटने के क्रम में निरतरता है । स्पष्ट ही मानव के अतजंगत् में कुछ नवीन जन्म ले रहा हैं जिसकी पीड़ा नई पीठी को अधिक अशात कर रही है। सामान्य यह पीडा देश-विशेष की पॉरस्यितियों से उसी प्रकार रग-रुप पाती है जैसे काच के रंगीन पात्र से मरा जल अपने आधार से ही आकृति और रगमयता ग्रहण करता है । कभी-कभी इस नियम में अपवाद भी देखा जा सकता है । अमेरिका भौतिक इष्टि से सर्वसुदिधा-सपन्न भौर वेज्ञानिक दृष्टि से अग्रगामी देश के पचास लाख से अधिक उच्चस्तरीय छात्रों वी अशाति केवल भौतिक सुविधा के अभाव से उत्पन्न नहीं वट्टी जा सकती । तत्त्वव आज मा युग प्राचीन और नवीन जीवन-मूल्यों और मान्यताओं की सप्नाति का टक राहट का है । विज्ञान ने एक नवीन प्रकृति धर्म वी प्रतिष्ठा की है जिसके कारण विश्व एक हो गया है । राजनीतिक विचारधघाराओ ने एक नये नोसिंशास्त्र का निर्माण किया है जिसके कारण विश्व लघु खडो में विभाजित होता जा रहा है। दोनो में सगति या समन्वय वी स्थिति अभी उतनन ही हो सकी है। उसे जीवन का उच्चतर लक्ष्यवोध ही समव कर सकता है जिसकी अभी खीज ही आरभ नहीं हुई । जहा तब भारत क॑ छात्रवर्ग का प्रइन है वह सामाजिव ही नहीं मनो- वैज्ञानिक स्राति के मध्य में है । उसदे व्यक्तिव की दाह और अत स्थिति इतनी विघटित है कि उसम निर्माण वो प्रेरणा जगाना दुर््फर नहीं तो कठित अवदय है । आज मे छात्र या स्नातक ने स्वतब्रता के आलोक मे आखें खोली थी और जीवन वी धड़वन ये साथ ही भारत का जयगान सुना था । उसकी आादाए बल्पनाए पीड़ी से भिन्न हो तो इसे स्वाभाविक ही माना जायेगा । पिछली शिक्षा का उद्देश्य | ७
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