ब्रह्मचर्य के पाँच आचार्य | Brahmchary Ke Panch Aacharya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
चीर उनके वारो गाई बाहुर गये हुये भे । जमदग्नि ने राजा का
स्वागत फिया श्रार बड़े ्रादर से उन्हें स्थान दिया । सहस्त्राज न
उस जमाने में चढ़ा प्रतापी राजा था चरै यदै राजा मदासजा
उस नाम सं कपत थे । क्योकि यदु वडा वीर पराक्रमी था!
दी कारण उसको 'घ्रमिमान भी होगया था ।
जमदग्नि ने उनल्लागों का सत्कार करने में कोई कमी न
रक्रा जमदग्नि कं पसर कोमधेनु याय थी वह् गाय वड़ी सुन्दर
पार स्वस्थ थी । उसका दूध भी नना स्वादिष्ट रोता था कि
संसार म॑ शायद दी किसी गाय का ऐसा दध टोता हो । सच से
चड़ां तारीफ की यात यद्र थों कि आवश्यकता पड़से पर वह उतना
ही दूध दे सकती थी जितने कि जरूरत हो । इस समय भी उतने
हतना दूध दिया कि उन लोगों से पिया भी से राया |
सदम्ताजु न को वडा श्राश्वयै हुआ । उसकी नजर भी गाय
पर पटु गद् | वस फोरन मन बदल गया उसने जमदग्नि से
वद् गाय मांगी । लेकिन जमदग्नि का नो निर्वह दी उसके दयाय
दोता था । सदख्राजुन के कई चार मांगने पर भी उन्दोंने गाय
नदीं दी । †
सदस्राजन को वड़ा क्रोध श्याया } वह् जबरदस्ती दही उस
गाय को लेकर चहाँ से चल द्विया । जमदग्नि करदह क्या सकते
थे । चुप चाप उदास द्ोकर बैठ गये |
उसी संमय वहां परशुराम श्रपने भाइयों सहित आा पहुंचे ।
साना पित्ता को उदास देख कर बोले क्या कारण है श्राप श्राज्
उदास बेठे हये हैं ।” माता पिठा ने उसी समय श्पनों उदासी
का कारण कह सुनाया । सुनते हो परशुराम जी क्रोध से धीर
हौ उठे श्र कहने लये वस्र इतनी सी वत के लिये ही छाप
वषै
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