ब्रह्मचर्य के पाँच आचार्य | Brahmchary Ke Panch Aacharya

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Brahmchary Ke Panch Aacharya by उमेश चतुर्वेदी - Umesh Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) चीर उनके वारो गाई बाहुर गये हुये भे । जमदग्नि ने राजा का स्वागत फिया श्रार बड़े ्रादर से उन्हें स्थान दिया । सहस्त्राज न उस जमाने में चढ़ा प्रतापी राजा था चरै यदै राजा मदासजा उस नाम सं कपत थे । क्योकि यदु वडा वीर पराक्रमी था! दी कारण उसको 'घ्रमिमान भी होगया था । जमदग्नि ने उनल्लागों का सत्कार करने में कोई कमी न रक्रा जमदग्नि कं पसर कोमधेनु याय थी वह्‌ गाय वड़ी सुन्दर पार स्वस्थ थी । उसका दूध भी नना स्वादिष्ट रोता था कि संसार म॑ शायद दी किसी गाय का ऐसा दध टोता हो । सच से चड़ां तारीफ की यात यद्र थों कि आवश्यकता पड़से पर वह उतना ही दूध दे सकती थी जितने कि जरूरत हो । इस समय भी उतने हतना दूध दिया कि उन लोगों से पिया भी से राया | सदम्ताजु न को वडा श्राश्वयै हुआ । उसकी नजर भी गाय पर पटु गद्‌ | वस फोरन मन बदल गया उसने जमदग्नि से वद्‌ गाय मांगी । लेकिन जमदग्नि का नो निर्वह दी उसके दयाय दोता था । सदख्राजुन के कई चार मांगने पर भी उन्दोंने गाय नदीं दी । † सदस्राजन को वड़ा क्रोध श्याया } वह्‌ जबरदस्ती दही उस गाय को लेकर चहाँ से चल द्विया । जमदग्नि करदह क्या सकते थे । चुप चाप उदास द्ोकर बैठ गये | उसी संमय वहां परशुराम श्रपने भाइयों सहित आा पहुंचे । साना पित्ता को उदास देख कर बोले क्या कारण है श्राप श्राज् उदास बेठे हये हैं ।” माता पिठा ने उसी समय श्पनों उदासी का कारण कह सुनाया । सुनते हो परशुराम जी क्रोध से धीर हौ उठे श्र कहने लये वस्र इतनी सी वत के लिये ही छाप वषै




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