ईश्वर और धर्म केवल ढोंग है | Ishwer Aur Dharm Keval Dhong Hai

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Ishwer Aur Dharm Keval Dhong Hai by भजामिशंकर दीक्षित - Bhajamishankar Dikshit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ईश्वर कया है ? १७ शै { ध पत्रा डालना नहीं है? क्यों न साक्-साफ़ कह दिया जावे, कि भू-तत्वचत्ता'्मों के 'नुमान के 'छातिरिक्त इस सम्बन्ध में कोई प्रमाण न्दी मित्तता । जिसे इस विपरय में त्रिक जिज्ञासा हो, चर्‌ भूगभ-शास्तर का अध्ययन करे और सत्य के अधिकाधिक समीप पहुँचने फा प्रयते करे! धर्मशाखो में इस सम्बन्ध की अपनी-छपनी कल्पना एँ दूसकर, लोगों ने जनता की जिज्ञासा कासाश कर दिया और इस विषयमे धिक जाँच न दहो- सकी । फारण कि लोग यष्ट समम गये, कि ईश्वर ने इस संसार को चनाया है और उसकी लीला को कोई नदीं समम्‌ सकता । जव इस तग से जिज्ञासा की पूर्ति होगई, तव इस विज्ञान का शमन्वेपण 'अपने-ाप कम होता गया, इसमें आश्वयंही क्या है ? वास्तव में यद्द संसार स्वाभाविक है और इसका संचालन स्वयमेव होता है । प्रकृति की 'अझव्यवस्थितता इसका सब से बड़ा प्रमाण है, कि वह स्वाभाविक है, किसी के द्वारा संचालित सहीं । 'अरु । ईश्वर के इश्वरत्व के सम्बन्ध में, उपरोक्त शंका में तीन- ,. चातों पर जोर दिया गया है । १-रचयित्ता, २- पालक 'और ३- संहारक । रव, हम इन त्तर्नो-दष्टिर्यो से ईश्वर का खण्डन करते हैं । संसार का सिंहावलोकन करने से अपने-आप पता चल जाता है, कि वह खाभाविक है। यदि वह्‌ इंश्वर का बनाया हुआ होता, तो निश्य ही इस शक्ल में न होता। एक साघारण-से- साधारण मनुष्य को भो यदि संसार का प्राझृतिक-नक्शा पकड़ा दिया जावे और लाक-पेंसिल देकर दोषों पर चिन्ह लगाने को कद्दा जावे; तो शायद ही कोई स्थान छूटने पाव ! कहीं तो हिमालय जैसा ऊँचा और बक्के से हैँका हुआ पहाड़ है




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