ईश्वर और धर्म केवल ढोंग है | Ishwer Aur Dharm Keval Dhong Hai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ईश्वर कया है ? १७
शै { ध
पत्रा डालना नहीं है? क्यों न साक्-साफ़ कह दिया जावे, कि
भू-तत्वचत्ता'्मों के 'नुमान के 'छातिरिक्त इस सम्बन्ध में कोई
प्रमाण न्दी मित्तता । जिसे इस विपरय में त्रिक जिज्ञासा हो,
चर् भूगभ-शास्तर का अध्ययन करे और सत्य के अधिकाधिक
समीप पहुँचने फा प्रयते करे! धर्मशाखो में इस सम्बन्ध की
अपनी-छपनी कल्पना एँ दूसकर, लोगों ने जनता की जिज्ञासा
कासाश कर दिया और इस विषयमे धिक जाँच न दहो-
सकी । फारण कि लोग यष्ट समम गये, कि ईश्वर ने इस संसार
को चनाया है और उसकी लीला को कोई नदीं समम् सकता ।
जव इस तग से जिज्ञासा की पूर्ति होगई, तव इस विज्ञान का
शमन्वेपण 'अपने-ाप कम होता गया, इसमें आश्वयंही क्या
है ? वास्तव में यद्द संसार स्वाभाविक है और इसका संचालन
स्वयमेव होता है । प्रकृति की 'अझव्यवस्थितता इसका सब से
बड़ा प्रमाण है, कि वह स्वाभाविक है, किसी के द्वारा संचालित
सहीं । 'अरु ।
ईश्वर के इश्वरत्व के सम्बन्ध में, उपरोक्त शंका में तीन- ,.
चातों पर जोर दिया गया है । १-रचयित्ता, २- पालक 'और
३- संहारक । रव, हम इन त्तर्नो-दष्टिर्यो से ईश्वर का खण्डन
करते हैं ।
संसार का सिंहावलोकन करने से अपने-आप पता चल जाता
है, कि वह खाभाविक है। यदि वह् इंश्वर का बनाया हुआ
होता, तो निश्य ही इस शक्ल में न होता। एक साघारण-से-
साधारण मनुष्य को भो यदि संसार का प्राझृतिक-नक्शा
पकड़ा दिया जावे और लाक-पेंसिल देकर दोषों पर चिन्ह
लगाने को कद्दा जावे; तो शायद ही कोई स्थान छूटने पाव !
कहीं तो हिमालय जैसा ऊँचा और बक्के से हैँका हुआ पहाड़ है
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