लवंगलता | Lavangalta

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Lavangalta  by पं. किशोरीलाल गोस्वामी - Pt. Kishorilal Goswami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिच्छेद ] आद्वाशंला। १३ रोके भी ने रुकते ओर फस जाते; किन्तु जब कि वे सूचना पा चुर थे और उन्होने दूर से आते हुए सचारो को देख लिया था, तब फिर वे शला कब ठहर सकते थे ! सेय्यद के मुह की बात उसके मंद मे ही रह गई ओर जबतक सवार नजदीक आवें, ३ शागीरथी के तीर पर जा पहुंचे और नदी में घोड़ा तैराकर बात की बात में पार उतर गए, और तब वे अपने को स्वतंत्र और निमय समभरः रंगपुर के रास्ते पर हो लिए | उनके निकल जाने के पांच ही मिनट घाद फ़तदखां की मात- हती मे दो सौ सवार वहां पर आकर ठहर गए, जहां पर सैय्यद अहमद्‌ दका वक्ता सा खड़ा खड़ा इधर उधर तक रहा था । उसे देख, फतहसां ने कहा,“ अक्खाह ! जनाव ! इस वक्त आप यहां पर क्या करते हैं ? बागी किघर गया ? ” सेय्यद अद्दमद्‌,--'' जनाब ! उसे में बातो में उठभाए रखने खी नीयत से यहां आया था, मगर वह का फिर हाथ से निकल गया |” फ़तद्ां,--''छाहोलबलाकूचत ! आपके रहते बागी भाग गया! अफसोस !” सेय्यद्‌ अहदमद्‌,--“' जनाब ' मेरो मजाल क्या थी, जो मैं अकेला उसे रोक सकता! “ फतह खां,--* मगर, जनाच | आजकं आप परनव्वाव साहब की खफगी है, इस वजह से जलने के मारे कही आ पने जानवूकर तो नव्वाचके बागी को नही भगा दिया है! फतहखा ने यह एक एेसी चात कही थी दि जिसकी भनक ने सिराचदौखा के कानों तकर पहुंचकर अवकी वार सैय्यद्‌ साहब के साथ क्या काम किया, इसका हाल आगे चलकर खुछ जायगा। यद्यपि फ़तहखां ने यह लात केवल दिछुगी के ढंग से कही थी किन्तु इतना सुनते ही सैय्यद्‌ अहमद के देवता कूच कर गए,उसके चेहरे पर मुदनी छा गई और वह काप कर लड़खड़ाती हुई जबान से कहने लगा,-- ^! अजो, तौवः कीजिये ओर खदा कै वास्ते एेसा बद्‌ कर्मा ज़बान शीरों सेन निकालिए । कसम खदा की, मै इसो नीयत से यहां आया था कि जब तक आप फौज के हमराह आयें, में उस मूज़ी को बातों मे उछूकाए रहूँं, मगर वह शेतान आख़िर, हाथ से




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