पीड़ा | Peeda

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Peeda by चक्रवती - Chakravati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वप्निल सवेदन-सी थी वहु स्निग्ध रूप की छाया, चिर छलना मं थी डूबी वेदना विकल्पित काया । दिभ्भ्रान्तं अकेली चल कर तुहिनों की मार पिरोयी मानस-पथ की मृदु-छाया में मेरी पीडा सोयी । चिर-त्यक्त प्रणय मन-मंदिर वैभव इसके मुदु सपने इन धुली हुई पलकों में लौटा दीं स्मृतियाँ किसने ?




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