सचित्र जैन कहानियाँ भाग - 18 | Sachitra Jain Kahaniyan Bhag - 18

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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य भाग लिखे जानें के वाद भी उसकी थाह अज्ञात ही रहेगी 1 ऐसा लगता है, जैन कथा-साहित्य के छोर को पानि में अनेक्र वर्षो की अनवरत तपस्या आवश्यक है । आगम, नियुत, चूणि, भाप्य, टीका आदि में कथाओं का विपूत भण्डार है रास साहित्य ने उसमें विशेषत्त: और ही अभियवाद्धि वी है ज्यो-ज्यो गहराई में पहुचा जायेगा, त्यो-त्यों विशिष्ट प्राप्ति भी होती जायेगी तथा और गहराई में घुसने के लिए उत्साह भी वृद्धिगत होता जायेगा 1 मून प्रसस्नता है किजैन कदटानियो कासमाजके सभी र्गो में विशेष समादर हुआ । कहना चाहिए, उसी कारण इस दिशा निरन्तर लिये रहने का उत्साह जगा । आरम्भ में योजना छोटी थी, पर्‌, भव वह्‌ स्वत. काफी विस्तीर्ण हो चुकी है। पहली वार दश 'भाग पाठकी के समक्ष प्रस्तुत हुए थे और अब दूसरी वार अगले पन्द्रद भाग प्रस्तुत हो रहे है। इसी ऋ्म से बढ़ते हए शीघ्र ही सी भागों की &पनी मजिले तक पहुंचना है । भगवान्‌ श्री महावीर के २५वे शताब्दी समारोह तक यदि ग्रह कार्य सम्पन्न हो सका, तो विशेष आहूलाद का का निमित्त होगा 1 अणुब्रत अनुशास्ता आचार्य श्री तुलसी के चरद आशीर्वाद ने साहित्य के क्षेत्र भे प्रवुत्त किया जौर अणुब्रत परामर्शक मुनिश्नी नगराज जी डी ० लिट्० के मार्ग-दर्शन ने उसमें गंति- जील किया 1 जीवने की ये दोनों ही अमूरय थाती है । मुनि विनपकुषागजो अलोकः व्र सुनि अभयकुमारजी' का मत्त साहचर्य-सहयोग नियन में निमित रहा है । १५ नवम्बर्‌ 3० --मूनिमहेन्दफमार प्रथम




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