द्रष्टिकोण | Drashtikon

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Drashtikon by विनयमोहन शर्मा- VinayMohan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० [ दृश्रिकोण पात्र कटनी मे पानो का चसि-चिनेण यड़ी चतुराई से किया जाता है । उसमें विस्तार की गुजादश न होने से यत्र-तन्र सम्वादों में ही पात्रों के चरित्र का रददस्योदूचाटन हो जाता दै । कहानी मँ जितने टी कम पात्र होते ई, चरितर-चित्रण उतना दो झ्धिक सफल दोता हैं । पात्र ऐसे हो जो हमें ग्रपरिचित न जान परदः वे इसी घरती के प्र,णी-दमारे चारो ्रोर चलने फिरने वाले-हों । दूसरे शब्दों में वे जीवन के बहुत सन्निकट दो ! पात्रों के चिगाण के दो प्रकार प्रचलित हैं-- एक मे लेखक प्रन को तटरथ रखकर पाच के व्यापारों तथा संमापिण से उसके चरि का उद्घाटन करना दै, दूसरे में वह स्वयं उसके मन का विश्लेपण करता है । प्रथम प्रणाली में कथाकार पात्र के सम्बन्ध में किसी प्रकार की विवे- चना नही करता । इसे नाय्कीय प्रणाली कदा जाता है श्र दूसरी प्रणाली को जहां कथाकार पात्र की भावनाओं कार्य-कलाप श्ादि की समीक्षा करता है श्रीर न्त मे स्वयं उसके चरित्र का निणीयक घन जाता है, 'विश्लेपणात्मक प्रणाली से संबोधित किय। जाता है। कहानी में एक या दोनों प्रणालियों का प्रयोग हो' सकता है । पर उसमें विस्तृत विश्लेपणु के लिए; क्षेत्र नहीं दे । क्योकि वद्‌ पूणं जीवन नी, जीवनांग का एक चिन रै । कथोपकथन कथोपकथन कहानी को रोचक नाति ई । वास्तव मेँ इस तत्व के द्वारा ही कहानी आगे बढ़ती श्र अपने उद्देश्य को छूती है। पात्रों के चरित्र भी इसी से प्रकाशित होते हैं । कहानी में लग्वे सम्बादों से ्रौत्सुक्य नष्ट हो जाता है; “ कथा * घर नहीं कर पाती | अतएव सम्वाद छोटे हों-चुस्त हो ; लक्ष्य की ओर ले जाने वाले हो । शैली- शेली कहानी कदने के दंग का नाम दै! कदहानीः--(१) श्रात्मचरित के सूम मे कही जा सकती है मानो स्वयं कदानीकार श्रपने जीवन की कथा (विशेष? क रदा हो । कहानी की यह शैली ५ मै > के साथ चलती है | (२) इतिदासके रपम कही जा सकती दहै जिसमे कानीकार तटस्य होकर घटनाओं का वर्णन करता जाता है । श्रधिकांश कहानियां इसी शैली में लिखी जाती हैं । (३) डायरी श्ौर (४) पत्रों में भी कहानी कही जाती है । शली के झ्रन्तर्गत कहानी कददने के दंग के श्रतिरिक्त भापा का भी विचार होता है। भाषा का रूप काव्यमय हो सकता. दै थवा सरल -- व्यावहारिक ॥




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