व्यष्टि-अर्थशास्त्र | Micro-Economics
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
733
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आाधिक प्ररालों के कार्य 9
(ष) उत्पादन क्षमता का शवुरक्षण तथा विकास (षरणणः
फाबाविशाकाट्ट एप छठ :
पत्पेक श्राधिक प्रणाली अ्रधिक से अधिक विकसित होने का प्रमर्ने करती
है । श्राधिक विकास के लिए पूंजी भावश्यक है ॥ ग्रतः प्रसयेक प्रकार की श्राधिक
प्रणाली किसी न किसी प्रकार चे श्रधक से श्रधिक पूली का सचेय व विनियोजन करने
का प्रयास करती है। श्राधिक साधनों की मात्रा में चूद्धि, उनकी किस्मों में सुधार,
तथा उत्पादन विधि में निरस्तर सुधार करने का प्रयत्न प्रत्येक श्राथिक प्रशाली करती
रहती है । थम-पघाक्ति का विकास वैज्ञानिक तथा प्राविधिक शिक्षा के विकास द्वारा
किया जाता है । पूँजीवादी श्रथंव्यवस्था में दक्षता का विकास कीमत प्रणाली द्वारा
प्रेण्ति होता है। भधिक कुशल व प्रशिक्षित व्यक्ति को कम वुशल व कम प्रशिक्षित
व्यक्ति की श्रपेक्षा ऊची दर पर पारिश्रसिक प्राप्त होता है। श्रत श्रमिक श्रपनी
कुशलता में वृद्धि करने का प्रयहन करते रहते हैं ।
श्राधिक विकास के लिएु पूजी रघन कै समान काये करती है । उत्पादन के
लिए पूजी श्राविश्यक है । प्रत्येक प्रकार को आधिक प्रणाली भ्राथिक विकास के लिए
पूजी का श्रेघिकाधिक प्रयोग करती है । उत्पादन की क्रिया में जिस पूंजी को. प्रयोग
किया जाता है उसमे मूल्य हास ( एथफ़त््ाबा0ण ) होता रहता है । म्ाधिक
प्रणाली दस वलि का प्रयत्न करती है कि प्रति वयं कमस कम, जितना मूल्य हास
होता दै उससे अधिक माच्रःमे नई पूजी का विनियोजने किया जाए जिससे पूंजी की
मात्रा दढती रहे तथा श्राधिक विकास होदा रहे । उत्पादन प्रणाली मे ज्यो ज्यो
मुधार होता जाता है, उत्पादन की श्रेष्ठ विधियों का इस्तेमाल बढ़ता जाता है, उसके
साथ ही साथ उत्तरोत्तर अधिक पूंजी की झ्रावश्यकता होती हैं । विकास की झार-
म्मिक श्रवस्था में विभिन्न प्रकार के उद्योगों के लिए पूंजी का प्रयोग किया. जाता
है। इसे पूंजी प्रसार (08008 शा॑ध0108) कहते है । विकास के साथ ही साथ
जब उद्योगों में पहले की प्रपेक्षा, प्रेष्ठ उत्पादन चिषिषो के कारण, उन्ही उद्योगो म
पहले की अपेक्षा स्रधिक पूजी का इस्तेमाल करना पड़ता है तो इसे पूंजी की गहनता
(06९ जा दभ) कहते है ।
पूजी बचत का परिसाम है । अतः पूजी मे समाज का व्याम निहित है 1
प्रत्येक अर्थ व्यवस्था इस बातत का प्रयत्न करती है कि वतमान उपमौगकात्याय कर
अधिक से अधिक पूजो का विनियोजन करे! पूंजीवादी श्रं व्यवस्था में कीमत
प्रणाली दथा कलाम दवाय पूज सग्रह तथा विनियोजन को प्रोत्साहन मिलता है {
श्राथिक विकास के साथ हो साथ उत्पादन प्रविधि मे भी सुधार होता रहता
है । उत्पादन प्रदिवि में सुधार द्वारा साधनों की दी हुई मात्रा द्वारा पहले की श्रपेक्षा
इधिक मात्रा 0 उत्पादन किया जा सकता है १ विभिन्न प्रकारके श्राविष्कारो द्वारा
उत्पादन विधि मे सुधार करने का प्रयत्न निरन्तर चलता रहता है )
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