प्रेमचंद रचनावली भाग 7 | Premchand Rachanavali Bhag 7

Premchand Rachanavali Bhag 7 by प्रेमचन्द - Premchand

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प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेख भाषण संस्मरण 17 सेंट आयूलेस में आकर रहने लगा। यहां भी उसने काश्तकारी का नक्शा जमाया मगर शायद उसकी तबीयत यहां से उचाट हो गई क्योंकि उसने चार ही बरस बाद इस खेती को भी बेच दिया और अपने मामा के घर को जो इलाई नाम के कस्बे में था अपना निवास बनाया। इस कस्बे में वह अमन-चैन से सन्‌ 1642 तक रहा। खेती करवाता था और उसकी आमदनी से अपने बड़े कुनबे की परवरिश करता था। और फिर क्रामबेल की उदारता सिर्फ अपने खानदान तक ही सीमित न थी अकसर वह मुसीबत के मारे गरीबों की तकलीफ और मुसीबत में शरीक होता था। जो कुछ वह अपनी रोजमर्रा की ज़रूरतों से बचा सकता था मुसीबत के मारे हुओं के साथ हमदर्दी करने में खर्च करता था। भगवान्‌ ने उसको सहानुभूतिशील और मैत्रीपूर्ण हदय दिया था। कहते हैं कि वह दिन भर में दो बार अपने खेतों के तमाम मजदूरों को अपने चारों ओर ज़मा करके बाइबिल से दुआ पढ़ता था और गो इस मज़हबपरस्ती से उसको माली नुकसान पहुंचता था मगर वह अपने मज़हब और उसके प्रचार के लिए जान- माल को कुछ न समझता था। क्रामवेल प्यूरिटन धर्म का पक्का अनुयायी था। दुनिया में जितनी चीजें हैं सभी में अच्छी और बुरी दोनों बातें पाई जाती हैं। प्यूरिटन भी इस नियम के अपवाद न थे। उनके धर्म में सदाचार आस्तिकता इंद्रियद़न स्वतंत्रता- प्रेम सहानुभूत तौर कर्त्तव्यपालन की शिक्षा सब कुछ था। लेकिन इसके साथ-ही- साथ धार्मिक कट्टरता और विध्वंसकारी धार्मिक आवेश अकसर उनकी और सब खूबियों को दबा लेते थे। प्यूरिटनों को अगर लड़ाई के मैदान में देखिए तो दृढ़ता साहस और वीरता की जिंदा तसवीर पाइएगा और अगर हुकूमत के दरबार में देखिए तो समझदारी दूरंदेशी और सचाई का आला नमूना पाइएगा। मगर लड़ाई के मैदान में उनका हद से बढ़ा हुआ धार्मिक कट्टरपन हज़ारों घरों को बेचिराग कर देता है और हुकूमत के दरबार में उनका हद से बढ़ा हुआ स्वतंत्रता प्रेम पार्लमेंट की सत्ता और प्राचीन अधिकारों पर घातक हमला करता है। प्यूरिटन धर्म स्पष्ट रूप में सभी दिखावे और आाडंबर की चौजों से घृणा करता था। उसका मंदिर उसका कलीसा जो कुछ था बाइबिल थी। यह कहा जा चुका है कि जेम्स के राज्यकाल में इस देव-ग्रंथ का अनुवाद इबरानी से अंग्रेज़ी भाषा में किया गया। इसके अनुवादक बहुत बुद्धिमान परमात्मा से डरने वाले और विद्वान लोग थे। कई महीने तक निरंतर परिश्रम करने के बाद यह अनुवाद पूरा हुआ। एक ऐसे समय में जबकि व्यापार को दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की ने सबका ध्यान रुपया हासिल करने की तरफ खींच लिया था और ईसाई धर्म समय के फेर में पड़कर बनावटी और नुमाइशी रस्मों का ढेर हो गया था इस किताब का छपना सर्वसाधारण के लिए अमृत का काम कर गया उनकी धार्मिक प्राणरक्षा का कारण हो गया। यह तो ज़ाहिर ही है कि इबरानी ज़बान पर इतना अधिकार हो कि इंज़ील समझने की योग्यता हो जाय जनसाधारण के वश की चीज़ नहीं थी और इसलिए कुल आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा भगवान्‌ की उपासना करने से मजबूर था। बेशक विकलिफ का तर्जुमा मौजूद था मगर अंग्रेज़ी ज़बान की तब्दीलियों ने उसे साधारण लोगों कौ समझ के योग्य न रखा था। जिस उत्साह से इस धार्मिक पुस्तक का स्वागत किया गया। वह




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