भूदान यज्ञ वर्ष -20 अंक -1 | Bhoodan Yagya Varsh-20 Ank-1
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
844
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न लि,
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महाजनं का रास्ता विश्वास का है
(७, ८, और ६ सितम्बर को देश के कुछ प्रमुख उद्योगपति और उनके प्रतिनिधि ब्रह्म विद्या मन्दिर
ववनार में ट्रस्टीशिप पर विचार करने ग्राये थे । उनकी बैठक को दो यार विनोवा ने सम्बोधित किया}
यहां हम उनके भापण का एक पंश दे रहे हैं ।--सम्पादक)
श्रापको हि्ुस्तान मे मदाजन सना
दीहै। जो उद्योगपति हैं, जगह-जगह बड़े
इंडस्ट्रितिस्ट कहलाते हैं वे घोर छोटे-
छोटे क(रखानेदार, बड़े भ्रौर छोटे व्यापारी,
इन पवदौ मिला कर एक् “महाजन शब्द
है । महाजन जिस रास्ते से जायेंगे वह
रास्ता दुनिया के लिए है। महाजनों येन
गतः स पथ । जिस रास्ते से महाजन जाते
हैं, उमी रास्ते से दुनिया को चलना है ।
महाजनों को हमारे यहां धष्ठ भी नाम
दिया है, भोर कहा--यद्यद् चरति श्रेष्ट
श्रेष्ठ पुरुप जैसा व्यवहार करेंगे, वैसा
दूसरे लोग व्यवहार कर । भ्रेष्ठका
अपघ श' सेठ' है। भाप सारे महाजन प्रो
श्रेष्ठ इकट्ठा हुए, घाप संबही शक्ति बनती
चाहिए । उसके लिए श्रापकों सम्मिलित
होना पड़ेगा धौर बदत कुछ करना पडेगा
पाया करना पड़ेगा उसका एक उत्तम
। निवेदन भ्रापके सामने पेश किया है श्रीमनूनी
जी ने | बहुत टौ सतुलिन--वेनेन्सद् निवेदन
है! तेक्ि, कमे से कभ कितना श्रता
चाहिए उतना लिखा है । उससे भापतो
थोडा भधिक ही. करना पढेंगां । उन्होंने
,मिनिमम लिखा है । मंक्मिमम तो हैही
नहीं, भॉप्टिमम भी मही है । केपल मिनिमम
है। इस पर सोच कर भाप अपनी बुद्धि से
जितना करना है कर रुकते हूं । कम से कम
* जितना करना है, उतता तो भापकों नरना
री होगा । क्योकि यह जमाने बी माय है।
स्येते सी ~
मैं भी भ्पनी यात्रा थे बई दफा बोलता
रहा इस पर कि मह्दाजनों की शक्ति झभी
खड़ी नहीं हो रही है । पहलों तीन शक्तियां
जगाने में तो बात्रा को कुछ न कुछ थोड़ा
(लाभ हेमा, परन्तु महाजनो कौ शक्ति जवान
कै लिए कया कसा जाये ? मुने महाजनो
लिए एक समीकरण बनाया
के
चर्चा
दनद, सोमवार, १ भनटुवर, ७३,
चलती है दुनियां में, एक भ्राद्वेट सेक्टर
झौर एव' पत्लिक सेवटर । प्राईवेट सेस्टर
० प्रतिशत है। पब्लिक सेक्टर ० प्रतिशत
है । मोर ५०५०१०० । देश वी
प्रगति ज्यादा होगी तो बया होगा * प्राईवेट
सेक्टर ४० प्रनिशत । पब्लिक सेक्टर ६०
अतिशत । ० शौर ६० मिलकर १०५
होगा । इस तरह होते-होते झाखिर ० -- १००
स्त६०० होगा । यद् श्रादशं हैं । तब प्राईवेट
सेक्टर जीरो हो जायेगा विंग जीरो, छोटा
जीरो नहीं । भौर पब्लिक सेक्टर १००
होगा 1 यह भ्राज षौ चितन की पद्धति है।
दावा ने कटा, वावा का भर्यमंटिक दूसरा
है। दाका गणित धास्व उत्तम जानता है।
बादा ने गणित किया है १९० १००
०० 1 प्राईविट सेक्टर १०० होना चाहिए
भौर पन्तिक् सेक्टर १०० होना चाहिए।
भोर दोनो मिलकर १००॥ प्रत्र यह् गमित
कॉलिजो में सिखाया नहीं जाता । लेकिन यह
गणित श्राप सहज समभकत लेंगे । धाषकों
समभने मेजर भी तकलीफ नहीं होगी,
देरी नहीं लगेगी । इस वास्ते गाघीजी ने
ट्रस्डीशिप को थियरी श्रापके सामने रखी 1
गाधीजी झापको जाहि के थे, मेरी जादि के
महीं थे । माप हैं बनिया । मैं है ब्राह्मण 1
प्रौर गुजराती में बहावत है, ब्राह्मण की
वृद्धि बनिये फ पीछे-पीछे जाती है । द्वाद्मण
वी दुद्धि 'पाछल' होती है, भागे जानी नही ।
श्रागल बुद्धि चाशणिया पादल बृ
दामदिया 1 माघीजी घे दनिया । निया
होने के नावे उन्टोने ज्रीपकौ द्टेर खतम
करने का नही सोचा । प्रापक्रौ सारी इष्टेः
'पब्तिक बन जाये भ्रौर भापके लिए दुनिया
मे अदर प्रदा टो, आप्य प्रतिष्ठा वे,
देखा वे चाहने ये 1.भ्राषकौ जो निजौ शक्ति
है, उषे ग्द्वजी मे आजकल नो हाऊ'
कटे ह । यह् नो हाऊ' जो है, वह् महाजनो
ग्तिहै ! मौर '्नो ष्टाय है बाहाणों
की शक्ति । दाहण ने श्राप सामने रख
दिया कि थे पाच शक्तिया रो सड़ी
करनी चाहिए--'व्दाय' । भद घाप लोगों
कौ 'कँसे, करा” करना चाहिए इस पर
सोचना है ।
गाधीजी ने इसका नाम ड्रस्टीशिप रखा ।
झाप भी बने रहै, प्रापक प्रतिष्ठा वनी रहै
भौर पके दारा दुनिया दौ सेवा हो, प्रापके
तिर दुनिया मे दृस्ट हो देसी बल्यना करके
ट्रस्टीशिप की कहपता रखी । कोई भी
भ्रादमी भरपनी जाति को उखाडना नही ।
कितना भी उचा चट जाये जाति को उसाद
नहीं सकता । वह बनिया था। इभ वास्ते
वनियो को उखाठने का काम वहवरही
नही सक्ता धा । गाधीजौ से वकर महाजनो
का रक्षखकर्ता मेरे सामने कोई सही है।
तो पह चीज श्रीमनूजी ने रखी है, उस पर
आपको सोचना होगा ।
विश्वास यानी व्यापक इवास
लेकिन थावा ने जी सोचा है, भ्रपनी
शीज, वह भाएंके सामने रखेगा। इगलिश'
शब्द है ट्रस्ट । वावा ने थोड़ी इग्लिश सीसी
थी श्रव धीरे-धीरे भूलता जा रहा है।
परिशाम यह हुधा कि ट्रस्ट बहते हैं तो
बावाश्रस्त हो जाता है एचदम । मैंने देखा
भारत-मगर में कई प्रवार ये, तरहलरह के
ट्रस्ट हैं, उपके ट्रस्डी होते हैं । वे ट्रस्टी
ज्यादातर सवस्त होते हैं । वित्त को संभालने
वाने बहत थोड़े होते हैं । सवस्त ही,
स्याइरकर होने हैं स्क स्ते शर्कयष्द
को मैं छोड देता हू भौर सरकत शब्द को
तेता ह 1 सरटेत शब्द जानदार होते हैं ।
बहते सूक्ष्म भ्र्यं प्रकट बरते हैं । ट्रस्ट में
क्या-क्या गहरे झौर व्यापक अर्थ हैं, मैं
जानता नहीं । ट्रस्ट के लिए सरकृत में शब्द
है रिश्दास 1 श्रापवों लिए जनता में विश्वास
पद होना चाहिए, तो झापवी इमेज (चित्र )
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