प्रसन्न राघवम | Prasannaraghava

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रमाकांत त्रिपाठी - Ramakant Tripathi

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रामनाथ त्रिपाठी शास्त्री - Ramanath Tripathi Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७) पण्डितः सेना भनिवा्यं वा । अपने पाण्डित्य कवे मान्यता कै दिषु शयने को “भमाग-प्रवीणः वतलाना, युग-भावना का अनुसरणमाय ह । उमकी इपर प्रमाण. प्रवीग' उसक्ति को लेकर ताकिक जपदेव के साथ उनको प्रभिन्नता सिद्ध करना व्यर्थ मायासमात्र है | श्रसन्नरावव पर एक दृष्टि संस्कृत साहित्य में मर्यादापुरुपोत्तम भ्रप्रतिम जनसायक भगवान श्रोराम चन्द्र के लोकोत्तर मावन चरित पर रचे गये नाटकं मै यदे सात श्र्टकों का “प्रसन्न राघव' नाटक अपना एक विधिष्ट स्थान रखता हैँ । बस्तुविन्यास पर दृष्टिपात करते ही श्रापाततः भागास होता हैं कि भवभूति के 'उत्तररामचरित” नाटक कों मन में रखते हुए, जयदेव जो इस नाटक की रचना में प्रवृत्त हुए हैं । जैसे चिघदर्शन द्वारा उत्तररामचरित में रामदनवाप चरित्त प्रदर्शित किया गया हैं, ठीक वैसे हो वितर का झाखम्वन लेकर समुद्र तट पर स्थित कपिततैस्य, राम के द्वारा समुद्र का अनुनय, ब्रिमीपण को राम के द्वारा लेकाघीश बनाया जाना तथां सेतंवन्यु श्रादि का प्रदर्शन कराया गया है! इसके श्रतिरिक्त उसी की श्रनुकृति पर गज़ा-यमुना-सरयू के संवाद के रूप में रामवनगसन, ददारथुमरण तथा बालि-सुग्रीव की कथा का निवस्वत हुआ है, रामचल्द्र हारा कचक मूंग का अनुसरण हंसे इरा वर्णित हुमा है, गोदावरी भ्रोर सागर के संलाप के रुप में जानकी हुरण, जटायु का मारा जाना घोर ऋष्यमूक पर्वत्त पर सीता के द्वारा सूत्र का गिराया जाना आदि कथा की सूचना दी गयी है । अधिकांश पयो में भी उत्तररामचरित के पद्चों के ही समान चमरकार दिखायी देता है । उत्तर- समचरित के समान ही इस नाटक में भी विदूपक को अदतारणा नही है । दा यदि यज्ञादव के बर्णान प्रसज्ध में हास्यरस की कच्क है तो यहाँ भी तृतीय अ के में वामनक गौर कुब्जक ने छपने संसाय द्वारा हास्य रस की सृष्टि की है । असन्नराघय में रसयोजना हमारे यहाँ प्राचीन श्राचार्यो ने नाट्य तत्त्वों की चर्चा करते समय रह का भी उल्लेख किया हैँ और भारतीय परम्परातुसार नाटकों में रस को ही सुर्य प्रदान की हूँं। रस का विवेचन पहुले-पहु नाटकों के हो सम्बन्ध में « किया २्र० नूर




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