पर आँखें नहीं भरी | Par Ankhe Nahi Bhari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
117
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पर आँखें नहीं मरी
- पत्तिगा विचारा जला जा रहा है
कि दीपक का दामन छला जा रहा है
कि जलते हें यों ही सनेही बिचारे
खुदी को बिसारे ।
हिलीं यों लताएँ
कि. ढाढ़स बंँधाएँ
कि श्रसमय सुमन-दल चुना जा रहा है
नया. ताना-बाना बुना जा रहा हैं
मधुप गुनगुनाते रहे मन को मारे
कली के सहारे ।
विमन मन मनाएँ
कि कविता बनाएँ
कि अंबर चुनौती मुभ्े दे रहा है
कि सागर मनौती लिये ले रहा है,
तनिक देर में तू कहाँ, में कहाँ रे ?
रहेगा जहाँ रे !
ग्यारह
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