राजप्रशस्ति : महाकाव्य | Rajprasastia Mahakavyam
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८] राजप्रशस्तिः महाकाव्यम्
--वखनाभ--महारथी-च्रतिरथी-ग्रचलसेन--कनकसेन--मटासेन-ग्रंग --
1
विजयसेन--श्रजयसेन -- ग्रभंगसेन-- मदसेन-- सिंहस्थ 1
ये राजा श्रयीध्या-वासी थे । सिंहरथ के विजय नामक पुत्र हुम्रा ।
उसने दक्षिण देश के राजाओं पर विजय प्राप्त की और अयोध्या छोड़कर वह
दक्षिण में रहने लगा । वहाँ उसे श्राकाशवाणी सुनाई दी कि वह “राजा ॥
उपाधि छोड़कर श्रपने वश मे श्रादित्य' उपाधि धारण करे।
मनु से लेकर विजय तक जो राजा हुए. उनकी सख्या १३४ है ।
तीसरा सगे--इसकी श्लोक-सख्या ३६ है । प्रथम श्लोक में हरि की
वन्दना है । उसके पश्चात् विजय के वद कै राजाश्रो की वशावली दी गई हू
जो इस प्रकार हैः-
-- पद्मादित्य--श्िवादित्य--हरदत्त-- --सुजसादित्य- -सुमुखादिन्य-
सोमदत्त - शिनादित्य---कंणवादित्य--नागादित्य-- -भौगादित्य---देवादिव्य-
श्राशादित्य--कालभोजादित्य -- ग्रहादित्य--
ये १४ श्रादित्य' उपाधिधारी राजा हृए । ग्रहादित्य के समस्त पुत्र
गहिलौत' कहलाये । अ्रह्। दित्य का ज्यप्ठ पुत्र चाप्पथा 1
यह वाप्प वही था, जिसे क्डकर पावती ने श्रध, बहाये थे । शिव का
चंड नामक गण मुनि हारीत राशिहुम्रा। वाप्प हारीत का शिष्य वना श्र
उसकी श्रान्ना से नागह्वदपुर में रहकर उसने एकलिग शिव का प्रचन किया । *
प्रसन्न होकर शिव ने उसे वरदान व्यि कि वहु वंशपरंपरा तक चित्रकूट पर
शासन करे प्रौर उसका वंश वरावर चलता रह । वरदान पाकर वाप्प १९१ वपे
१ वाप्पसे श्रभिप्राययहांवापा रावलसेहै।
२ नागहुदपुरा = नागदा \ यह् नगर उदयपुर से १४ मील दूर उतर
दिशा में है ।
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