हिंदी का व्यावहारिक रूप - Hindi Ka Vyaavharik Roop | Hindi Ka Vyavaharik Roop
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
113
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विनयमोहन शर्मा- VinayMohan Sharma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारत की अन्तरप्रान्तीय व्यवहार-भापीा १६
में रचनाएँ करते थे ओर अपनी अभिव्यक्ति में भारतीयता का रंग चढ़ाते थे ।
मुगल सम्राटों के युग से दक्षिण कै विभिन्न राज्यों मे वरावर उत्तरवासी ससिपा-
हियों की भर्ती होती रही है । स्थानीय निवासियों का उनसे सम्पर्क रखने के लिए
हिन्दी या हिन्दुस्तानी सीखनी पड़ती थी । वावर के भारत-प्रवेश के पूवं उत्तर-
भारत मे हिन्दी लोक भापा वन गई थी । उसने दौलतखां लोदी से हिन्दुस्तानी के
माध्यम से बात की थी ।
हिंदी या हिंदुस्तानी के अन्तरप्रान्तीय व्यवहार के और भी अनेक ऐतिहासिक
प्रमाण उपलब्ध हुए हैं । टी० मौट्टे का “अर्ली योरोपियन ट्रेवलर्स इन नागपुर
टेरीटरीज' में यात्रा-वर्णन छपा है जिसका एक अंश इस प्रकार है -
“७ अप्रैल, सन् १७६६ । आज प्रातः:काल मुझसे कहा गया कि कॉकेर का
राजा रामसिह आ रहा है । अभिवादन के पदचात् मने उससे उत्तरी सरकार के
मार्गो में पड़ने वाले स्थानों के सम्बन्ध में प्रन कियि। राजाने स्वपरं अनेक प्रदनों
के उत्तर दिये 1 मुझे जानकर आइचयं हुआ कि राजा हिन्दुस्तानी भाषा वड़ी
धाराप्रवाह गति से वोल रहा था ।” (प्ृप्ठ १३२)
महाराष्ट्र में लोक नाटक, तमाशा, गोंधल आदि में हिन्दी का प्रयोग होता
था । 'तमागा' के एक दृद्य में खड़ी वोली का चलता रूप देखिए--
“छड़ीदरा--हम छड़ीदार, पोणाक पेना जड़ी जरदार--गले में डाला भाव
मोतन का हार । जान ध्यान की वाँघी तलवार--भगवान के नाम को पुकारू
ललकार, ये ही हम छड़ीदार कहलाते हैं ।
पाटील--तुमने कहाँ नौकरी वनाई ?
छड़ीदार--ददा अवतार में ।
पाटील--कौन से दग अवतार में ?
छड़ीदार--मच्छ, कच्छ, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, श्रीकृष्ण,
वौद्ध, कलंकी ऐसे महाराज के दग अवतार में नौकरी वनाई |
इसके वाद छ्ड़ीदार दबो अवतारो के गुण-वर्गन करता है 1”
उपर्युक्त विवेचन से यह् स्पप्ट है कि हमारे देदा में अति प्राचीन काल से पर-
स्पर व्यवहार की एक भापा रही है जौर वह् भापा मध्य प्रदेश की आयें परि-
१. मध्यदेङ की सीमा समय-समय पर परिवतित होती रही ह । मनुस्मृति मं
उसकी सीमा है--“हिमिपवेत श्रौर विन्ध्ययवंत के मध्यमं श्रौर विशनतसे
पुर्व और प्रयाग से पश्चिम में जो है वह मध्यदेश कहलाता है।” विनय पिटक
में पश्चिम में न्नाह्मणों का पुन प्रदे, पुरव में कजंगल नगर के कहासाल, दक्षिण
पुवे में सलिलवती नदी, दक्षिण में सतेकन्तिक नगर श्रौर उत्तर में उसीरधज
पर्वत । उत्तर श्रौर दक्षिण के ये स्थान कहाँ हैं, इसका ठीक निर्णय अभी नहीं
User Reviews
No Reviews | Add Yours...