आज का भारत | Aaj Ka Bharat

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Aaj Ka Bharat by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1970 वे सस्क रण को भूमिका / 5 'वहुराष्टृवाद ओर पार्विस्तान' (प° 464 81} वै प्रश्न पर यह अनुच्छेद, ब्रेणक, ऐसे समय लिखा गया था जव पाकिस्तान अभी एक राजनीतिक योजना का अग था मौर एक राष्ट्र के रूप में उसकी स्थापना नहीं हुई थी। उस समय विश्लेपण के जो सामाय सिद्धात निर्दिष्ट किए गए थे उनवी दिशा इस प्रकार थी. राजनीतिव क्षेत्र मे साप्र- दायिक विभाजन को मजबूत वरने तथा राष्ट्रीय भादोलन को विफल करने एव उसमें फूट डालने के उद्देश्य से मुस्लिम लीग वी स्थापना को प्रोत्साहन देने में साम्राज्यवाद की जिम्मेदारी, व्यवहारते हिदूवाद को साथ लेकर राष्ट्रीय प्रचार करने और इस प्रकार हिद मुस्लिम सहयोग पर आधात करने मे काप्रे् क नेतृत्व की जिम्मेदारी, यह मान लिया जाना कि वाद के दौर म मुस्लिम लीग को उल्लेखनीय जनसमथन प्राप्त हुआ और भारत के विभाजन की माग तथा अलग राज्य वी स्थापना, विकृत रूप में ही सही, वास्तविक राष्ट्रीय माग थी जो भारत मे बहुराप्ट्रवादी स्वरूप के अनुरूप भी, राष्टीयता को धम पर आधारित करन के किसी भी प्रयास की भत्मना क्योकि यह्‌ प्रतिक्रियावादी मौर विभाजनकारी प्रवृत्ति टै तया इससे अनेक नुकसानदेहं विनाश कारी दुष्परिणाम की आशकाहै। तव से पाकिस्तान नामक राज्य की स्थापना हो चुकी है, 1956 म उसने “इस्लामिक गणराज्य की घोषणा वी और आज दो दशकों से भी अधिक समय से उसका अस्तित्व बना हुआ है। तदसुसार नई राज्य सीमाओ के अदर लोकप्रिय सघप विकसित हुआ है। विश्लेषण के सामाय सिद्धातो की वैधता बनी रहती है। पाक्स्तान वी स्थापना की बुनियाद कितनी अस्थिर थी और इसका शासन सभालने वाला वेग कितना सकीण विचारधारा वाला था, इसका जायजा इन तूफानी वर्षों वी घटनाओ तथा निरतर अशातिं एवं दमन, 1958 से लागू माशल ला और अयूब खा वी संनिक तानाशाही से मिल जाता है। इस पुस्तक के लिखने के समय तक अयूबर खा के पतन और पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्व वी समाप्ति की माग क लेकर सूर्वी पाकिस्तान मे तेज हो रहे लोकश्रिय जादोलन ये साथ वत्तमान सकट पराकाप्ठा पर पहुंच चुका है । अतिम अध्याय “भविष्य को मूल के अनुसार ही पुनमुद्रित किया गया है । इस अध्याय में स्वतत्रता की पुवसध्या 1946 मे, आजादी की प्राप्ति वी भावी स्थितियों का आव- लन करनं का प्रयास किया गया है ओर इसलिए यह्‌ अध्याय कुछ हद तक अव भी महत्व- पुण है । बाद की घटना की रोशनी मे देखें तो मुख्य विपयवस्तु का भाज भौ कुछ महत्व है । प्रथम साम्राज्यवाद द्वारा नंपथ्य से जहा तक हो सके अपना नियत्रण बनाए रखने की निरतर कोशिशों का आभास मिलता है । सबसे पहले तो आजादी देने जैसी प्रारभिव प्रतिबघक शर्तों के जरिए करने वी कोशिश और फिर इन तरीक के विफल हो जाने पर ब्रिटिश वित्तीय पूजी के सचालन की रक्षा करने और यहा तक वि उसके क्षेत्र का इस आशा के साथ विस्तार करने की कोशिश कि भले ही अब भारतीय ध्वज फहराता हो पर हस्र नए युग मे वास्तविक साराश और शोपण से पैदा मुनाफे का सर्वोत्तमं




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