प्रारम्भिक अर्थशास्त्र १ | Prarambhik Arthsastra (part I)
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
केवल कृष्ण ड्युवेत - Keval Krishna Dyuvet,
गुरुचरण सिंह - Gurucharan Singh,
जयदेव जी शर्मा - Jaidev Ji Sharma
गुरुचरण सिंह - Gurucharan Singh,
जयदेव जी शर्मा - Jaidev Ji Sharma
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
432
श्रेणी :
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केवल कृष्ण ड्युवेत - Keval Krishna Dyuvet
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गुरुचरण सिंह - Gurucharan Singh
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जयदेव जी शर्मा - Jaidev Ji Sharma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वियय-प्रवेश् ११२
-मी विजान के विचारं रे । इससे हस में स्पष्ट सोचने और राही निषय करने की योग्यता
उत्पन्न होती है । यह एक लॉमप्रद मानसिक व्यायाम है । अर्थशारन्र का चतुर विद्यार्थी
लगता कों धोद्धा देने वाले राजतीतिज्ञो की चालों को सरलता से समझ सकता है ।
वहूं सस्ते अखदारी प्रचार से बहदेगा नहीं । यह सच हे कि 'अ्थंश्वास्त्र कोई पारस
पत्यर नहीं है जो जिंगे छुए उसे सोना कर दे ।' किन्तु कम से कम सोना ग्रौर न्य
निम्न धातुमों में पहनान अवश्य सिखाता है ।
(ग) भर्थशास्न का अव्यपन हमें वह समझने में मदद देता है कि भ्राण की
'पेचीदा भ्र्थ व्यवस्था बिना किसी वेंस््रीय तियन्त्रण के लगभग ग्रे ग्रा टी कि
प्रकार चलती है। प्रत्यक म्राधिक गडयडी फिसी न किसी तरह स्वय ही सुधर जाती
द । उदाहरण के लिए, यपि किसौ एक वस्तु की कमी हो जाय तौ उसकी कीमत बढ़
जाएगी 1 एसे भ्रनावदयक माग धटकर पूति फे बरावर ही श्रा जाएगी ।
(च) र्दा हमे भनुप्य फे परम्पर एकं दूसरे पर निर्भर होने वा महत्व-
पूणं पाठं पदाता है । हम यह् जाने जान दै कि रसे रपी श्राउश्यकताश्रो कौ सन्तुष्ट
कै लिषटुहमद्रुषयो पर् श्राभिव दै मरौर षरे द्रुमे हम पर। ग्रह स्पष्टतया एक
काम करते वाते का दुमे से, एकर उद्यौग का दूरे उद्योगे, श्रौर एक देश का
दूगरे से, नाता हमारे मस्तिष्क मे वँठा देता है । यह ज्ञान हगारी श्रपनी दायित्व की
भावना को सुद्ढ करता है गौर इस प्रकार बेहतर कार्य श्र अधिक सुखी समाज की
और ले जाता है।
(ड) अ्रथेशाश्त्र का म्रध्ययन हमें उपयोगी और बुद्धिमान नागरिक बनाता
है। हमारे समय की भधिकाश समस्याएँ मूलत आधिक है। केवल प्रयंशात्त ही
हमे कृषि, व्यापार, उद्योग आदि की समस्यासों को सुवकाने के लिए सही राजकीय
मीवां तेव कते सौर दानमे में हमारी सहायता फरता है। सर्थरास्त्र का
विद्यार्थी सरलता से करातेवण (४३1०2), चलन-ूदरा (चणय), विनिमय
(०) भरादि के प्रश्नो को समक्ता रै । इस प्रकार यह स्पष्ट है नि प्र्ष्ास्तर
कौ शरष्मयन हये बुद्धिमान्, चुर् श्रौर उपयोगी नामरिक बनाता है ।
(ब) इसके प्रतिरिक्त, अर्थसास्त्र का दिया हुआ जान हमारे जीवन में
म्रत्यत्त व्यावहारिक मूल्य रखता है । भयंशास्थ का विज्ञान जीवन से सम्बन्धित है
और घनिष्ठसम रुप में । स्रचिकतर सरकारी महकमो मे भ्रयेयास्व धा ज्ञान उपयोगी
आवय मिद्ध होना है मनोर् कोभो-दभो अ्रादम्यकत सप्रभा जाता है ।
व्यबरा[धियो, उद्योगपतियो, बैदाधिपतियों श्रौर सार्वजनिक नेतारो केलिए
अयंशास्त्र विशेषकर उपयोगी हैं ब्योकि यह उन्हे उपयोगी तथ्यों का भरपूर 'भण्डार
भवान कर्ता हे । मह् उने कोई सौत्विक परागं तो नही द पाता, किन्तु उन्हे ब्रूदियौ
से बचते में सहायता देता है । छ
(बद) अन्मे, यह् अर्थशास्त्र ही है जिसकी झोर हम अपनी गरीबी की
समस्या सुलसनि के लिए देखते हैं । “अधंदात्न स्वय कोई दूध-दहीं की नदियाँ
नहीं बहा देगा, किन्तु वह उस सुखी समाज को लाने गे, उगदा मिर्माण करने में
और उससे पहले जो फुछ गिराना हो उसे नष्ट करने में, यह एक श्राददयक झौज्ार डै।
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