आर्थिक एवं वाणिज्यिक निबंध | Arthik Evam Vanijay Nibandh

Arthik Evam Vanijay Nibandh by शिवध्यान सिंह चौहान- Shivdhyan Singh Chauhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ शर्क एवं वाणिज्यिक निव भूमि उत्पादन का प्रारम्मिक एवं प्रमुख साधन है श्रौर उस दान जीविक साधन देने के समान हैं । वह स्थायी दान है! याचक को दरवार मसाँगने की भावश्परता नहीं रहती | = यदि लोगो की सुपर खिलायं हो वे द्रालंसी बनते हैं। भूमि प्राप्त करने बाला उठे पश्जिम से कमायेगा 1 वह भ्ालसी नहीं बन सकता । उसकी उन्ति होती है 1 भूदान मे देते दाला घमडों नहीं बनता प्रौर न क्त्र वाला दोन-दीन) देने बाला ग्रपना अहंकार छोडकर भपना कर्तव्य समकर देता है भोर लेने बाला उसे प्रपा ्रधिकार पम कर प्राप्त करना है! भारत मे गाँव-्गाँव के घंघे टूट रहें हैं । लोगी को कुछ घ्ाघार जमीन ही है। जमीन वी भालकियत लिटाता पुरपों में सर्व अ प्ठ पुएय है । एशिया भर में जमीन की माँग है प्रौोर जनसँध्या वढ रही है । कुछ लोगों के हाथ भुंमि रहने से शेप लोग अ्सन्तुष्ट रहते हैं । भसम्तोष से हिंसा बढ़ती है । भुदान से न्नताति सिंटती है । दुनिया ईडुपा के भय दे दचती है 1 विनोद थी का विश्वास है कि यदि मूमिहीतों में भूमि वेंटेगी तो हवराज्म को फिर सूं की किरणो के समान घर-चर में पहुँचेगी । सम विभाजन के दृष्टि कोश सै भौ भूदान एक उत्तम पुएप है । उदृदेर्य भूदान वा मुख्य उद्देश्य देश की भूमि समस्या का समाधान है । भूमि समस्या हल करने कै लिए नमोदारौ उन्मूलन, चकेबन्दो, सहकारी सेतो इत्यादि प्रनेक पुकितणा सौची गई हैं प्रौर कानून वनाए पये ह, किन्तु सफनतापूर्वक पर्या हत्त नहो हुई 1 भदान हृदय परिवर्तन इरां भरुमि के च्पापदूर्त वितरण शी प्रोर एक महान प्रय दै । भूदान का शष्देक सोसो की त्यय वुद्धि जगाने श्रोर नही विचार शुद्धि के लिए है। लोगो को स्याय-प्रियता सिखारर सूंदान एक ऐसा सामाजिक वातावरण बनाना चाहता है जिसमे पूर्णतः श्राधिक भ्रोर सामाजिक साम्य हो ! सूदान का एक उदय गाँव की सभी समस्याप्रो का हल है। यह गाँव जीवन को सुषी एवं समृद्ध बनाने का एक शान्तिमय मार्ग हैं। हर गाँव की कुल जमीन गाव में बेंटनी चाहिए, हुर साँव में प्रामोद्योग होते चाहिये”, हर गाँध को प्रपत भरावर्य्व त्ताप्रो की योजना चनानी चाहिए । हर एँव प्रपना वार्प प्रपने ढंग से गरेग! । इछ भाँति ग्रामीण जोवन में रासराज्य की सावना का समादेश हो. मूदान का लक्ष्य है । अन्तवोगतवा, भुदान को उद्य (क) भूमि श्रौर सम्पत्ति मे व्यविनगत स्वामित्व को श्स्त करके सामाजिक स्वामित्व स्थापित करना, (ख) एक शस्व्रहीन एवं शासमहीन समाज का निर्माण, (ग मताधिकार का भरन्त करके सेें सम्मत्ति द्वारा निर्शव त्तथां (ध) भद्र प्रवज्ञा शरीर श्रप्तहपोन हारा सम्मिलित सुरक्षा व्यवस्था वे रना हु




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