समाजशास्त्री अनुसंधान का तर्क और विधियाँ | Samaj Shastriya Anusandhan ka Tark aur Vidhiyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.87 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
Dr. M.M. Lavania ( Madan Mohan Lavania is a renowned socialist of Rajasthan. He was born on Dec 20, 1915 at Tenti gaav Mathura in a farmer's family.
He did Master's in following subjects: English Literature, Mathematics, History, Philosophy, Sociology and PHD in Sociology.
He gave his services at St Xavier's School as a Mathematic Teacher for short while. He was Principal and HOD of Sociology at DAV College, Ajmer and after his retirement he served as Principal at Madhvanand Girls College, Jaipur.
He has written independently and co written and edited more than 150 books on various topics on s
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वंज्ञानिक प्रसाली के झाघारमूत सिद्धास्त 23
6. वैज्ञानिकों द्वारा प्रयुक्त अवघारणाएँ सामान्यत जटिल श्रथवा कठिन
होती हैं । उनका प्रयोग भी विशेष म्र्थ व परिस्थिति में क्या जाता है 1
7. ब्रवधारणाश्रो का विकास होता रहता है तथा उनमे परिवर्तन भी होता
रहता है । वे श्रपनी प्रकृति, विशेषनाएँ श्रथवा अध्ययन केन्द्र बिन्दु समय-समय पर
यदल भी सकती है 1
8 झ्वबघारणा का उद्देश्य यथायं (८17४) को समभने एव उसे स्पष्ट
करने में समाज वैज्ञानिकों की सहायना करना होता है ।
9 जब प्रवघारणाओों को निरीक्षण की इकाइयों तथा उनकी विशेषत्ताधो
के श्राधार पर वर्मीकृत करने हेतु प्रयोग में लाने हैं तो उसे हम चर ( ४४118916 )
कहते हैं । चर अवधारणा को माध्य विमिति है ।! उदाहरणाय दुर्वीम के सामाजिक
विधटन के सिद्धान्त में मानव जनसख्या को समानता, एकता व विचलन के विरोध
के झाघारों पर वर्गीकृत क्या गया है ।
10. श्रवघारणाएँ उपकल्पना (पफ०016515) निर्माण में सहयोगी होती
हैं। 'टी बी बीटोमोर' के झनुसार नई म्वधघारणा दो उद्देश्यों की पूरति में सहायक
होनी है । प्रथम श्रब तक पृथक पृथक् रूप में प्रकट न होने वाली घटनाओं के वर्गों
को ये वर्मीकृत श्रथवा विभाजित करते हैं, तथा द्वितीय, वे घटनाश्रो के सक्षिध्त वर्णन
व प्रागे के विश्लेषण मे सहायक होती हैं ।
11 म्रवघारणाएँ सिद्धान (ए8६०ण४) के श्निवायं ग्रग होती हैं,
कपोकि प्रयुक्त झदवदारणाशं के घ्राघार पर ही 'सिद्धान-निर्माण” की नीव रखी
जाती है ।
12 एक अवधारणा न तो सत्य होती है न भ्सत्य, क्योकि वह तो
केवल मात्र एस्द्रिय तथ्यों (52055 0318) का नामोलेख या सकतीकरणा ही होता
है। यह मानव इन्द्रियों को प्रभावित करने वाले अथवा उनमे अपना प्रतिबिम्ब या
सवेदन उत्पन्न करने वाले तथ्यों का एक भमूर्त रूप ही होता है ।
13 श्रवधारणाएँं मापनात्मक' होनी चाहिए । प्रदधारणाओ को मापना
उसकी श्रमूर्तता पर निर्मर करता है» वह जितनी कम श्रमूर्त होगी उत्तनी ही सरलता
से उसे मापा जा सकेगा ।
14. पवधघारसादों की झस्पप्टताओं को, दूर. करने के ल्एए उन्हें, सील: सर;
से परिभाषित क्या जाना चाहिए तथा उनका 'मानकीकरण' (51807ं810(28-
(00) किया जाना चाहिए 1
15. मिचेल (वा1९ ) ने डिक्शनरी झाफ सोश्योलोजी' में अवधारणाम्ो
के लिए तीन कसीटियों का उल्लेख किया है* वे हैं--
व. दद्ि0कट दव्व कग्हवंह 00 एप , ए 43
2 0 2बन्ध्वल दी 02 ला, फू 3
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