उपन्यासकार अश्क | Upanyasakar Ashak

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Upanyasakar Ashak by डॉ. इन्द्रनाथ मदान - Dr. Indranath Madan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपन्यासकार अश्क : एक सूल्यांकन ततिवादी विंचारघाराओओं के बीच उस पथ क्रो प्रशस्त करती है ज॑ व्यक्ति-चिन्तन के अधिक निकट है, परन्तु सम्रि-चिन्तन से दूर भी नहीं है । प्रेमचन्द्‌ कर समाज-मगल को भावना का स्वरूप सामान्य दे ग्रौर जव यह माक्संवादी जीवन-दशंन से प्रभावित हो जाती है तव यह विशिष्ट एवं वैज्ञानिक रूप धारण करती है । इस विचारधारा से प्रेरित होकर प्रगतिवाद्ी श्रथवा समाजवाद उपन्यास का विकास होता है ! इसी भाँति श्रजञेय का व्यक्ति-खिन्तन विशिष्ट है और त्रश्क करा व्यक्ति-चिन्तन सामान्य है । व्यक्तिबादी उपन्यास सामान्य व्यक्ति- चिन्तन से प्रभावित है श्रौर मनोविषश्लेप्रणवादी श्रथवा मनोवैज्ञानिक उपन्यास के मूल मे मनोविश्लेषण के सिद्धान्तो से पुष्टकर व्यक्ति चिन्तन का स्वरूप विशिष्ट है । इसे श्रतिशय व्यक्तिवादी जीवन-दशंन की संज्ञा माक्संवादी ग्रालोचकों ने दी दै! इस प्रकार हिन्दी उपन्यास के चेत्र मे चार विभिन्न प्रद्र्तियोँं का प्रायः समानान्तर विकास उपलन्ध होता है । इन प्रवरत्तियों के मूल मे व्यक्ति-चिन्तन श्रौर समष्टि-चिन्तन की परस्पर-विरोधी विचारघायर्ण हैँ जो उपन्यास के वस्तु एवं शिल्प पक्त को रूपायित करती हैं । प्रेमचन्द-परम्परा के उपन्यास-साहित्य के मूल मे समाज-सत्य, समा ज-मंगलं श्रथवा समाज-यथाथ की जीवनहष्टि है श्मश्क की उपन्यास-कला करौ प्रेरित करने बाला व्यक्ति-सत्य, व्यक्ति- हित श्रथवा व्यक्ति-यथाथं का दृष्टिकोण है । इनकी विच्वार-दृष्टि का स्वरूप विशिष्ट न होकर सामान्य है, मतवादी न होकर साधारण है, संकुचित न होकर व्यापक है । इन दो उपन्यासकारों में श्र॑तर को स्पष्ट करने के लिए इनकी कृतियो में नायकों के स्वरूप तथा समस्याओं के चित्रण से अवगत होना झपेक्तित है । अश्क की व्यक्तिमूलक जीवन- दृष्टि झाश्रमों तथा सदनों की स्थापना करने के पत्न में नहीं है । चेमचन्द मानव की समस्याओ्ों का समाघान करने के लिए सामाजिकः संस्थाद्ओों की कल्पना करते हैं। वे किसान के जीवन को सुखी बनाने १७




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