उपवास | Upvas

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Upvas by श्रीमती ज्योतिर्मयी ठाकुर - Shrimati Jyotirmayi Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १० ) भयानक से भयानक रोग को अपने शरीर से दूर कर सकते हैं । अ (~ समभने और विश्वास करने की बात है । रोगों के सम्बन्ध में किसी जटिल श्र विस्तरत परिभाषा की जरूरत नहीं है। जो लोग रोगों से बचना चाहते हैं अथवा उत्पन्न हए रोगों का शमन करना चाहते है, उनको भोजन के सम्बन्ध मे सममने की झावश्यकता है । जो भोजन जिन्दा रहने के लिए खाया जाता है, वही हमको बीमार भी करता है घर वही असमय स्ृत्यु का कारण भी होता है। यह बात बहुत बंशों में सदी है लेकिन कुछ झंशों में गलत भी है । इसलिए कि हमारा भोजन हमारी-बीमारी का कारण नहीं है । भोजन के नाम पर हमारी भूलें हमारे रोगों का कारण हैं । . हम लोग यदि सावधानी के साथ समभने की चेष्टा करें. तो हमारी समझ में सब बातें छाजाँयगी । प्रकृति का नियम यह है कि मूख लगने पर हम भोजन करे ओर जो हमारे खाने, के पदाथ हों, उन्हीं को हम खाने के काम में लावें । लेकिन हम लोगों में ऐसा नहीं होता । वास्तव में भूख के लिए भोजन नहीं किया जाता, बल्कि खाने के लिए खाना खाया जाता है । थोड़े से गरीब मजदूरों तौर किसानों की बात यदि छोड़ दी जाय तो बाकी सभी लोगों की जिन्दगी इसी प्रकार की भूलों से भरी हुई हे। बढ़े-बढ़े शहरों में तो इसी प्रकार के शत- प्रतिशत लोगों की संख्या हे ¡ मेय सही अनुमान यह दहै कि शहरों में पाँच हजार में भी ऐसा एक मनुष्य न मिलेगा, जो भूखे होने पर भोजन करता हो । छोटे चर बड़े-सभी प्रकार के घरों में भोजन के समय भोजन बनता है झ्ौर बच्चे से लेकर बढ़े तक को भोजन बनने पर खाना पडता है! भूख लगने और न लगने का कोई प्रश्न ही नहीं है। जिन:




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