नागरीप्रचारिणी पत्रिका | Nagripracharini Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
573
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुरानी हिदी । ११
महोदय की केंद्रता को ध्यान में रखकर उसका बताया हुआ राजा
के कविसमाज का निवेश बड़ा चमत्कार दिखाता है । वह कहता है
कि राजा कविसमाज कें मध्य में बैठे, उत्तर को संस्कृत कं कवि
( कश्मीर, पांचाल ), पूर्व का प्राकृत ( मागधी की भूमि सगध ),
पश्चिम को श्रपभ्रश ( दक्षिणी पंजाब और मस्दश ) श्ार दक्षिण
को भूतभाषा ( उज्जैन, मालवा आ्रादि ) के कवि बैठे । मानों
राजा का कविसमाज भौगोलिक भाषानिवेश का मानचित्र हुआ |
यों कुरुक्षेत्र से प्रयाग तक श्रतवेंद, पांचाल श्रौर शूरसेन, रौर इधर
मरु, श्रवतो, पारियात्र ओर दशपुर--शौरसेनी श्रौर भूतभाषा कं
स्थान थे ।
पर्श ।
बांध से बचे हुए पानी की धारा सिलकर अब नदी का रूप
धारण कर रही थीं ! उनमें देशी का धार भी आकर मिलती
गहं । देशी न्नर कृद नही, बोध से बचा हुआ पानी है, या वह जा
नदी मार्ग पर चला झाया, बांधा न गया । उसे भी कभी कभी
छान कर नहर में ले लिया जाता था। बांध का जल भी रिसता
रिसिता इधर मिलता आ रहा था । पानी बढ़ने से नदी की गति वेग से
निन्नाभिमुखो हुई, उसका “अपभ्रश” (नीचे का बिखरना) होने लगा ।
अब सूत से नपे किनार श्रार नियत गहराई नदी रही । राजशेखर
ने संसृत वायी का सुनने याः , प्राकृत का स्वभावमधुर, श्रपथ्रश
को सुभन्य श्रौर भूतभाषा को सरस कहा हे । इन विशपणो की
साभिप्रायता विचारने याग्य है । वह यह भी कहता है कि काई बात
एक भाषा में कहने से अ्रच्छी लगती है, कोड दृमरीमें, कोदर॑दा
तीन में । उसने काव्यपुरुष का शरीर शब्द श्रौर अर्थ का बनाया है
जिसमें सस्कृत का मुख, प्राकृत का बाहु, झपभ्न श को जघन-
की (१) कास्यमी मांसा, र ९४-९. की ण
(र) बाटरामायण ।
(३) काम्यमीमासा, ए. ४८ ।
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