विश्वभारती पत्रिका | Vishvbharti Patrika

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Vishvbharti Patrika  by कालिदास भट्टाचार्य - Kalidas Bhattacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाथ-योगी-सम्प्रदाय के 'द्वादश-पंथ' = परशुराम चतुवदी डा नाथ-योगी सम्प्रदाय के इतिहास पर विचार करते समय हमारी दृष्टि स्वभावत८ इसके उन अनेक पंथों वा शाखा-प्रशाखाओं की ओर भी चली जाती है जिनके विभिन्न केन्द्र भारत के प्रायः प्रत्येक भाग में बिखरे पढ़े हैं। उनके विषय में कभी-कभी ऐसा कहा जाता है कि वे पहले, केवल १२ प्रथक-एथक संस्थाओं के ही रूप में; संघटित हुए थे। इसीलिए, उन्हें 'ट्वादश पंथ की संज्ञा भी प्रदान की गई थी और तदनुसार, उनके ऐसे १२ नामों की कोई न कोई सूची भी प्रस्तुत की जाती हैं । अतएव, यदि हम उनके प्रवर्तेन-काल का कोई समुचित पता पा सके' अथवा हमें केवल इतना भी विदित हो जा सके कि वेः अमुक व्यक्तियों द्वारा अथवा अमुक प्रकार की विशिष्ट परिस्थितियों में; स्थापित किये गये थे तो; संभव है, इससे उनके मूल सम्प्रदाय के इतिहास पर भी कुछ प्रकाश पड़ सके तथा उसकी अनेक बाते” स्पष्ट हो जाँय। परन्तु इन द्वादश पंथों का हमें अभी तक ऐसा कोई प्रामाणिक तथा स्व-स्वीकृत विवरण नहीं मिल पाया जिससे इस विषय मे यथेष्ट सहायता खी जा सके अथवा जिसके आधार पर हमें केवल इतना भी ज्ञात हो सके कि उनका प्रारम्भिक रूप कया रहा होगा । उनकी आज तक उपलब्ध सूचियों की संख्या लगभग २० से ऊपर तक चली जाती है; किन्तु इन सभी में हमें पूरी एकरूपता नहीं लक्षित होती ।. इनमें सम्मिछित किये गये नामों मेँ न्यूनाधिक विभिन्नता पायी जाती है और उनमें से किसी के द्वारा हमें ऐसा कोई स्पष्ट संकेत भी नहीं मिलता जिसके आधार पर इनमें से किसी एक को दूसरी से अधिक प्राचीन वा विश्वसनीय ठहराया जा सके । फिर भी इतना निश्चित है कि यदि इन सारी सूचियों ,का कोई तुलनात्मक अध्ययन किया. जाय तथा :इस प्रकार इनके बीच किसी व्यवस्थित क्रम का अनुमान भी छगाया जा स्के तो, अपने अनुसंधानकाय में कुछ न कुछ प्रगति अवद्य हो सकेगी । नाथ-पंथीय श्र॑थ 'गोरक्षसिद्धांत संग्रह के अन्तर्गत; “शाबरतंत्र' को उद्धृत करते हुए कहा गया है कि आदिनाथ, अनादिः का, अतिकाल, कराल. विकराल, महाकाल, काछभेरवनाथ; बटुक, भूतनाथः वीरनाथः एवं श्रीकंठ ये १२ कापाचकिरहैँ। वहीं पर उनके शिष्यो की मी १२ की ही संख्या बतलाकर उनके नाम नागान, जडमरत, हरिशवन्द्र, सलनाथ, भीमनाथ, गोरक्ष, चपट, अवद, वैराग्य, कन्थाधारी, जन्थर एवं मल्याजुन दे दिये गये हैं तथा इन्हें मार्ग-प्रवर्तक' तक २




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