बृहत्संहिता | Brihatsanhita
श्रेणी : ज्योतिष / Astrology
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
510
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूनिका । ९ `
ततः साकेतमाक्रम्य प॑वान् मथुरांस्तथा ।
यवना दुष्टविक्रान्ता प्राप्स्यन्ति कुसुमष्वनम् ॥
ततः पुष्पपुरे प्राते दमे प्रथिते हिते ।
अक्ुाः विषयाः सर्वे भविष्यन्ति न संशयः ॥
दुष्टयवनगण, साकेत पंचार ओर मथुराको आक्रमण करके पाट्हीपुव्र (पटने) में
जायगे । कुञुमपुरमें जायकर उसको ष्टे ओर तैसनेस कर उरग । कानैसाहव कहते दहं
कि व्यादरीयरराजाः मिनाएडरके समयमे ईस्वी समसे १४४ वषं पिरे सकेतपर चटाई है
थी । अतएव इस 'चढाईसे पीछेह्दी गर्गसंहिताका ल्खिनेवाला हुआ । गर्गजीने अयनके तिष-
यमें जो कुछ लिखा है उससे जाना जाता है कि उन्होंने यह विषय पराशरीसे छिया ।
क्योंकि अयनका झुभाशुम फू वर्णन करनेमें दोनोंने एकही मत प्रकाश किया है ।
यथाः परादारः-
यदा प्रा्तो वेष्णावान्ते उदन्मार्ग प्रपद्यते ।
दक्षिणेऽेषां वा महाभयाय ॥
गगेजी ङ्खिते
यद्] निवत्तते रिः श्रविष्ठा पत्तरायणे ।
मष्ेषां दक्षिणोऽपराप्तस्तावद् विद्यान्महृद्धयम् ॥ |
दोनों शछोकका एकही अथं हेः धनिष्ठाफे शेषतक गमन करनेसे सूर्यका उत्तरायण
होता है ओर अश्छेषातक गमन करके दक्षिणायन आरम्भ होनेपर महाभयकी हका करनी
चाहिये । परारारजीके ठेखकरी प्राचोनता उनके छंदसेही प्रगट हो रही है ।
करान्तिपातका परिधिवत् परिभ्रमण हिन्दुज्योतिषियेकि मध्यमे सबसे पहरे वासिष्टसि-
द्वान्त ठेखक विष्णचन्द्रने प्रकट किया उनका मत हे कि कान्तिपात एक कल्पे
१८९४१९१ वार परिभ्रमण करता ह अतएव माना जाता हं किं उनके मतसे अयन भरति
वषे ६०.०६ विकला करके पूर्वमें अग्रसर होता है । यह मत ग्रीसवाठे हिपाकंस और
टोछैमी इन दो ज्योतिषिर्योकी पुस्तकसे स्या गया ह अथवा स्वयम् जआयेन्योतिषि्यीका
प्रकाश किया हुआ है, इस वातकरो हम मही मांति निणेय नहीं कर सकते ह । परन्तु दोनों
तिषियोंकी निरूपण की हुई अयनकी वास्सरिक गतिको निहारकर जाना जता है कि
इसको विष्णुचद्रने निरपेक्ष भावप प्रगट किया । हिपार्कसके मतसे क्रान्तिपात प्राय ८९ वर्षमे
एक अंश ओर टेरेमीके मतसे १०० वषमे एक अंशा आगे वटता ह ।
भास्करने लिखा हु; -दिरोमांणे द अध्याय |
विषुवत्रान्तिवेखयोः सम्पातः कान्तिपातः स्यात्|
तद्धमणाः सोरोक्ता व्यस्ता अयुतत्रयं कल्पे ॥ १७ ॥
अयनचलनं यदुक्तं मुञ्जाः स एवायम् ।
उत्पले तद्ध गणाकस्पे गोहगन्ञेनन्दगो चन्द्राः ॥ १८ ॥
विषुव और क्रांतिमंडढके मिलनको क्रान्तिपात कहते हैं । सूयसिद्धान्तके मतसे एक
कल्पमें उसका भगण तीस हजार होता है । अयनचलन और क्रान्तिपात एकही बात है ।
मुंजला दिके मतसे एक कल्पमें अयनके १९९६६९ भगण होते हैं । दिरोमणिकी व्याख्या
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rakesh jain
at 2020-11-23 09:56:44