पराया | Paraya
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पराया / 17'
ही अपनी वास्तविकता का ध्यान हो आया । बोला, “नहीं, मैं चला
जाऊंगा 1“
, “नहीं, चलो, मैं तुम्हें छोड़ आऊं ।” ममता ने आग्रह से कहा भौर उसे
पढ़ने की चेष्टा करने लगी ।
“नहीं ।” रमेश ने फिर उसी उदास स्वर में कहा, “तुम्हें चलने की
कया ज़रूरत है? मुझे क्या रास्ता नहीं मालूम ?”
“क्यों ? मेरे चलने पर तुम्हें कुछ आपत्ति है ?” ममता ने कहा । अब
उसके स्वर में स्नेह का गीलापन था ।
रमेश चुप हो गया । उसने देखा--ममता के नेत्रों में एक चमक थी ॥
वह समझ नहीं सका कि इसका अर्थ क्या था ? ः
कोई पथ नहीं था । ममता के सामने वह कुछ कहने का साहस करके
भी स्पष्टतया कहं नहीं पा रहा था; क्योंकि ममता ने उसका हाथ पकड़
लिया । .
वह् उसको हिचकिचाहट पर कोर ध्यान नही दे रही थी । वह् उसे
पहुंचाने मे अपने स्नेह का गौरव दिखा रही थी । रमेश परेशान-सा दिखाई:
दिया । वह् लाचार हौ गया ।
ममता ने उसे गाड़ी में बिठाकर गाड़ी स्टार्ट कर दी ।
बादल आकाश में गरजता हुआ उठता चला जा रहा था ` ओर उसकी
काली घनी हुमस हवा पर कांप रही थी ।
मोटर अहाते के बाहर निकल गई । पानी की वृदे अव तेज हो गई थीं
मौर सामने के शीशे पर बार-बार वृदे इकट्टी हो जाती थीं भौर आप
ही-साफ हो जाती थीं । रमेश के हृदय में भी ऐसी ही दुविधा थी, जो
बार-बार फिरती, बार-बार मिट जाती । ममता प्रसन्न-सी दिखाई दे रही
थी।
रमेश अपनी ही चिन्ता में आकुल चुप बैठा रहा । पानी का वेग कम
होने लगा और वे भारी बूंदें अब झीनी हो गईं । पानी की खड़ी झड़ी
की हवा की हिलाई पानी की धारा, तिरछी होकर काटना छोड़ चुकी
'थी।
कार बढ़ती ही जा रही थी। रमेश के हृदय में एक अजीव विचार:
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