भीषण युध्द के बाद | Bhishan Yuddh Ke Bhad

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Bhishan Yuddh Ke Bhad by महाश्वेता देवी - Mahashveta Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पानी 1 वह्‌ बौरत अपनी छाती में से बहते खून को एक यतन में चुआती हुई 'पानी दो, पानी दो” विस्तारो तो क्या करना होगा, इस बारे मे उत कोई निर्देश नहीं मिला था। नहीं, इस दारे में कोई 'दरीफिंग' नहीं हुई थी । ड्रिस-परेड बरते-दरते युवर बा रत मास मन एसे हो गये थे कि ऊपर वाले व निर्देश ये अलावा वह बुछ नहीं बर सकता था । हात्ट-चाज ऐडवास जेमे आदेश उमरे पहुंचाने हुए हैं और इन्हीं के अनुसार वह काम बरता है । अब इस नई परिस्पिति में वह असहाय है। मुछ नहीं कर पा रहा है। इसीलिए अपनी जगह स्तब्ध खड़ा है। सारी रात, सारी रात वहु भौरत चीती रही--“पानी दो । देवता, पानी षे 1 फिर सवरा हमा । सूय उगा। सफेद, व.द, निमम सूरे ¦ क्रोडो फारेनहाइट उष्मास हवा धभक कर जने उठी 1 इसके बाद वे पोगर गाव छोडकर थाहुर निक़ने } युवर अपने अलमुनियम मे कमरे में चला गया । घसने राहत की सौस ली । मय शर्रदिदु वाबुसी गाव में नयी प्रजा बसा मकेगा। व सब, दूढ़े-बुदियाँ, औरतें, बच्चे चते जा रह थ गाँव छोडगर । सनम एक भी चालक, युवा बोर प्रौड नहीं था । कोई निपारया तरुण भी न था। हीने की मात भी न थी । सूपे गौर जले प्रातर ने पर कर्के व सहन परमा गये । दस जायगी सोर उरते जायेमी तोये वस से जायेंगे । वर्ना सात मीत ददप चल गर शहूर जायेंगे । बस शा इतजार करते हुए सरयू बोली । “जिन्होंने गोठुल को घराया, वे भी नहीं बचे । छाती चीर कर मैंने खून दिया, फिर भी वर्षा नही हुई उनि गोकुल को क्यो धराया र मैंने भी खून क्यो दिया ?” किसी न उत्तर नहीं दिया । किसी मे पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं था। चहोंने देखा दूर पर धूल उडाती बस भा रही थी । बस आ रही थी, लास धूल उड़ रही थी । हवा जल रही थी । हुवा मे नहर के पानी का शोर भर रहा था । (नपुत, पूछा अंक, 1974)




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